Book Title: Jain Shiloka Sangraha Pustika
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund
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कहे ताणीने॥करी संपाडा कंबल काजें, श्रेणिक राजा नरी समाजै ॥ १६॥ नृपने व्यापारी कहे शिरनामी, शाने संपाडा करोगे स्वामी ॥ कंबल सोले नद्रायें लीधी, वेगें वीश लाख दी नार दीधी ॥ १७॥ मनमां विचारवं श्रेणिक महाराजे, वाणीये लीधा व्यापार काजें ॥ एम चिंतिने एक मंगावे, खाले नाख्योते खबरज पा वे ॥ १८॥ वात मेहेलमां तेह बंचाणी, कहे राजाने चेलणा राणी॥ इहां तेडी ते वणिक अन्न प, जाइये कहवा तहन रूप॥१९॥ तरत म हाराजा तेहने तेडावे, नेट लेइने नद्रा तिहां आवे ॥ नद्रा आवीने नूपने नाखे, स्वामी सां नलो राणीनी साखे ॥ २० ॥ घणु सुहाला शा लिकुमार, हयं थायें एकाश हजार ॥ न लहे रात ने दिवस नर, किहां जग किहां प्राथमें सू र ॥२१॥ निपट नाजुक तेह नानडीओ, क्यारे केहनी नजरें न पडीयो ॥ ते माटे तुमे लाज वधारो. प्रनुजी हमारे मंदिर पधारो।। ॥ २२॥ पूरे मावित्र गेरुनां लाड, स्वामी ते मां शो पाड सपाम ॥ इम सुणिने श्रेणिकरया,

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