Book Title: Jain Shiloka Sangraha Pustika
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund
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॥४९ ॥ विमल वेढालो लटकालो लांडो, के हर केशरीयो घाहरनो घांडो, चाकर तेमोने पा टण गंडो, देखें कुण आवे आपणने आडो॥ ॥ ५० ॥ तिण घडी गाडले नार घलावे, सा तशे सोनानी सांढो चलावे ॥ पांचशे चाकर ब गतरिया साथी, पोते पण बेठो ऐरावण हाथी ॥५१॥ चाल्यो उत्रपति बाजार मां हे, पा ये लागीने एम कह्यो शाहें ॥ एवो परधान पा टणथी जाय, नीमन नलु कदीय न थाय ॥ ॥५२॥ बेटानी कीर्ति सनिली माता, पाम्यां परम सुख संतोष शाता ॥ अप हिलीयुं मूक्यु टली अशाता, चोखां शुकुन थयां गेडीने जा तां ॥५३॥ गायो गांडुने घोमाने हाथी, कन्या कुंवारी सात आठ साथी॥ डाहवो रूपमियो बोले बांहे पूरी, मृग मालातो जगमते सूरि ॥ ॥५४॥ शकुन बांधीने आगे पगदीधो, नीम नी सीमे पाणी न पीधो ॥ त्रीजे दिने गढ ता रंगो लीधो, डहोल पोसीने पोतानो कीधो ॥ ॥५५॥ अदरियो आप श्रावीने मिलियो, व धाई दीधी दांतें पातलीयो ॥ वशुना गढवालो

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