Book Title: Jain Shiloka Sangraha Pustika
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund
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रुडो आराम, देव दानवने रमवानो ठाम ॥ ॥ २८॥आगे चालंतां रामपोल आवी. वाघन पोल ते सघलाने नावी ॥ स्वर्ग द्वारनो बांधव दीसे, जोतां संघनो हियडो हीसे॥२९॥ पासें बेठा गौमुख यद, सेवा करे जेहनी दद ॥ संघ सान्निध्य चक्रेसरी देवी, सदा तीरथ रखवाल करवी ॥३०॥ मल नायक श्री षन जिणंद. तेजें जलहल कोमी दिणंद ॥ वंश इख्वांग म रूदेवा नंद, नानिराया कुल पूनमचंद ॥३१॥ पद्मासन बेठा प्रनु योग ध्यान, धनुष्य पांचौं सोवन वान ॥ सत्तर नेदी तिहां पूजा नणावी, नावना श्री संघे नलीपरें नावी ॥ ३२॥ स्नात्र महोत्सव अति बहु रंग, नेरि मुंगल वाजे मृदंग ॥ नोबत निशान जांफर साद, रणजण रणके घंटना नाद ॥ ३३ ॥ अगर केद्रुना महकेजे धूप, गजे ठकुराइ त्रिनुवन रूप ॥ पुठे नामंडल अति ते ज गजें, देवाधिदेव ते एहवा विराजे ॥३४॥ नाटक नृत्य सदा उबरंगे, नावना नावी मनने अनंगे ॥ इणीपरें प्रनजीना दरिशण कीधा. व्य खरचीने बहु जश लीधा ॥ ३५॥ सूर्यकुं

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