Book Title: Jain Shiloka Sangraha Pustika
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund
View full book text
________________
३७
॥ ५७ ॥ बहरी पालीनें यात्रा जे करशे, मुक्ति रम पीनी लीला ते वरशे ॥ नाण दरिसण चारित्रने पावे, मोह सप्तक वहेलो खपावे ॥ ५८ ॥ संवत ठारे चोत्रीशे वरपें, यात्रा कीधीवे मनने हर पें ॥ शुदि पूनम चैत्रज मास, सदा गोडीचो पूरजो आस ॥ ५९ ॥ संघ सर्वे तिहां हरष धर
वे, सारा लापसी करीने जिमावे ॥ साधु सा ध्वीने दीयेवे दान, गोरडी गाये बहुगीत गान ॥ ६० ॥ कवि संघपतिने देइ आशीष, अविचल तुमतणी होजो जगीश ॥ नहीं कोइ जैनमां इ गिरि तोले, माने देवचंद्र इणीपरें बोले ॥ ६१ ॥ ॥ अथ श्री भरत बाहुबलको शिलोको लिख्यते ॥
C
प्रथम प्रमुं माता ब्रम्हाणी, तूठी पे जे अविरल वाणी ॥ भरत बाहुबल नाइ संजोडे, कहेशुं शिलोको मनने कोडें ॥ १ ॥ नानीरा जानें कुठें नगीनो, प्रथम तीर्थंकर ऋषन उ पनो | सो पुत्र तेहना समरथ जाएं, भरत बा हुबल जला वखाणुं ॥ २ ॥ आयुध शालायें च क्र उपनुं, मनते हरखीन भरत नूपनुं ॥ चक्र पूजीने करी चढाइ, दीधा मेराते जंगलमां

Page Navigation
1 ... 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83