Book Title: Jain Shiloka Sangraha Pustika
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund

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Page 44
________________ ॥ रह्यो आरोगी ॥ ते आगलशुं गजं नुमरुं, ते माटे कहु मानो हमारुं ॥ १८ ॥ इमनिसुणी ने बाहुबल जपे, मुक यागे तो त्रिभुवन कंपें ॥ चढ्यो क्रोधने दंत करडे, होठ करके ने मूत्र ज मरडे ॥ १९ ॥ एहवो ते कोण नूलो ब मारी, जेह तडो वडी करे हमारी ॥ कहे बाहुबल चढ़ा वी रीस, करुं युद्ध पण न नामुं शीस ॥ २० ॥ वे गो खीजीने दूत ते वलियो, अनुक्रमें जरतने यावी ते मिलियो | नरतने जइ दूतते नाखें, आण न माने कटकाइ पांखें ॥ २१ ॥ सुणी वा तने मानी ते साची, चडाइ करवाने मेरी ते वा जी || हाथी घोडाने रथ नीशाण, लाख चोरा शी तेहनुं परिमाण ॥ २२ ॥ रथ लेइने शस्त्रे ते नरियां, धवला धोरीडा धिंग जोतरिया ॥ साथै बन्तुं कोड पाला परवरिया, नेजा पंचरं गी दशकोड घरिया ॥ २३ ॥ पूरा पांच लाख दवीधर नार, महीपति मुगटाला बत्तीस हजा र ॥ शेष तुरंगम कोड ठार, साथै व्यापारी सं ख नपार ॥ २४ ॥ सवाकोन ते साथे परधान, मोटी नालनुं तेरे लाख मान ॥ सायें रसोइ

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