Book Title: Jain Shiloka Sangraha Pustika
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund
View full book text
________________
गनयी वाद ॥ बावन्न जिनालय देहरा शोहे. देव दानव किन्नर मोहे ॥१४॥ पेसता वामां गें चौमुख दीपे, तेजे करीने दियर दीपे॥ सहस फणाने श्री शांतिनाथ, मूल गंनारे त्रि नुवन नाथ ॥१५॥ चाल्यो संघ हिवे सोरठ दे श, पंच रतन जिहां कीधो निवेश ॥ तीरथ त टिनी तोय सुदारा, तांबुल रिदिने अतिहि वि स्तारा ॥१६॥ माड बीडना गुबज गहके, जा ई जूइने परिमल महके ॥ दाडिम कदलीने र ६ सहकार, वनस्पति शोने नार अठार ॥ ॥१७॥ रेवत गिरिने सहु शिर नामी, जिहां बेठा बे नेमनाथ स्वामी॥ कर्म खपावी केवलपद पाया, राजुल नेमजी मुक्त सिधाया ॥१८॥ति हाथी संघ हिवे आनंद पामी, श्राव्या जिहां ने श्री शत्रुजा स्वामी ॥ गिरि देखीने हरख बहुपा या, सोना रूपाने फूलडे वधाया ॥१९॥ धन धन दाहाडोते आजनो दीशे, सहु हरख्या ने विश्वाज वीशे॥ प्रावी उतरीया पादलिप्त स्थान, ठाकर उनमजी दीये बहु मान ॥ २० ॥ पाली ताणुं नगर ते अत्यंत दीपे, तेजें करीने

Page Navigation
1 ... 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83