Book Title: Jain Shiloka Sangraha Pustika
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund

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Page 76
________________ समज्या हिवे बात सहु जाणी, बीजी परणीने थापो पट राणी ॥ ८४ ॥ श्राप अहंकारी उत्र धरावी, हठवाणीयानी बेटी घर अणावी ॥ मु डे न कह्यो पण मन मांहे जाणी, सात आठ बेटी सबलानी प्राणी ॥ ८५॥ नाणेजी कहे मामाने नाइ, जिमे नही राणी सबली रीशाइ॥ जवाहीर जडावनी पालखी दीधी, शाहे शेठा पी संघाते लीधी ॥८६॥ बंदीखाने जे बाद शाहनी बीबी, पगे बीडीने हाथमां बीडी ॥ वि मलने प्रावी अंचुडा देखामे, शाह एहवा अ जमेर पाडे ॥ ८७॥ हुकम हुन देव बंदीखाना गेडी, बादशाह पेरावे बह सारी साडी ॥गढ गाम गरास थोडासा दीधा, शाह बत्रपति चा कर कीधा ॥ ८८॥ इम करतां अाबु उपर जा य, खागें गढ देखी खुशीयाल थाय। डुंगर सा तपुडो सबलो देखे, ए पागल बीजा नाखरशे लेखे ॥ ८९॥ कहे कोटनोराजा देखामो, प्रा नमी आखे अणी सीरोहीवालो ॥ पूरो पाखरी श्रो पहाड कालो, चांपले लीनो बेल गेगालो ॥९० ॥ पान- बीडुं पाए मेलीजें, पूरो नाणो

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