Book Title: Jain Shiloka Sangraha Pustika
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund
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खंड नोक्ता, कीधा धर्मना मारग मुगता ॥ नय र शंखेश्वर वास्यं नमंगें, थापी पार्श्वनी प्रतिमा श्रीरंगें ॥१६॥ शत्र जितीने सोरठ देश, द्वारि का नगरीमां कृष्ण नरेश ॥ पाले राज्यने टाले अन्याय, हायक समकित धारी कहेवाय ॥१७॥ पार्श्व शंखेश्वर प्रगट मल्ल, अवनिमांहे तुं एक अ वल्ल ॥ नाम ताहरूं जे मनमाहे धारे, तेहना सं कट दूर निवारे ॥ १८॥ देशी परदेशी संघ जे श्रावे, पूजा करीने भावना नावे॥ सोना रूपा नी अंगी रचावे, नृत्य करीने केसर चढावे॥ ॥१९॥ एक मने जे तुमने बाराधे, मनना म नोरथ सघला ते साधे ॥ तोरा जगतमा अब दात मोटा, खरो तुंहींज बीजा सह खोटा ॥ ॥२०॥प्रतिमा सुंदर शोहे पुराणी, चंद्र प्रनूने बार नराणी ॥घणे सुरनरे पूज्या तुज पाय॥ तेहने मुगलिना दीधा पसाय ॥ २१ ॥ोगण शाठने पर शत वरसें, वइशाख वाद उठने दिवसें॥एह शिलोको हरखे में गायो,मुख पायो ने दुरगति पलायो ॥ २२ ॥ नित्य नित्य नवली मंगल माला, दिन दिन दीजे दोलत रसाला

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