Book Title: Jain Shiloka Sangraha Pustika
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund

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Page 31
________________ तप चोविहार ॥ ७ ॥ पहेलां धरणेंद्र तुमे उपा सो, तेहने देरासरें देव ने पासो | तेह प्रारा धो पशे बिंब, सरसे आप काम अविलंब ॥ ९ ॥ मुखथी मोटो बोल न नाखुं त्रण दिव स लगे सैन्य हुं राखुं ॥ जिनवर जक्तिनो प्रना व जारी, थाशे सघलिविध मंगलकारी ॥ १० ॥ इंद्रे सारथि मातुलि नामें मेल्यो जिनवरनी न तिने कामे ॥ आसन मांडीने देव मुरारी, प्रा करीने बेठा तिठारी ॥ ११ ॥ तूठो धरणें पे श्री पास, हरख्या श्रीपतिप्रति उल्हा स ॥ नम करीने बांटे तिलवार, जठ्युं सैन्य ने थयो जयकार || १२ || देखी जादवनो जाल म जोरो, जरासंधनो त्रूट्यो तिहां तोरो ॥ व्यारें लेईने चक्र ते मेल्युं, वंदे कृष्णने आवी ते पेहे लुं ॥ १३ ॥ पबी कृष्णना हाथमां बेठं, जरासंधने शाल तो पेहुं ॥ कृष्णें चक्र ते मेल्युं तिहां फेरी, जरासंधने नाख्यो ते घेरी ॥ १४ ॥ शीश बेधुं ने धरणी ते ढली, जयजय शब्द ते सघले न बलियो || देव दुंदुनि आकाशे वाजे, उपर फू लनी दृष्टि बिराजे ॥ १५ ॥ तुमे वासुदेव त्रण

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