Book Title: Jain Shiloka Sangraha Pustika
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund

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Page 27
________________ २३ उपन्न कुल कोडी जादव मिलिया, तूरने नादें स मुद्र जल हलीयां ॥ ३६ ॥ चढी जानने वाजिंत्र बाजे, जाणे यापाढो जलधर गाजे ॥ जुगतें क रीने जादव चढीया, प्रथम घावतो नगारें पडी या ॥ ३७ ॥ मयगल माताने परवतकाला, ला ख बेतालीस सबल सुंढाला ॥ बाकेँ बक्याने मढ़ें जरंता, मुके सारसी चाले मलपंता ॥ ३८ ॥ ला ख बेतालीस तेजी पाखरीया, उपर सवार सोहे केसरीया ॥ अबी कवी ने पंच कल्याणा, पूठें पोढाने पुरुष समाणा ॥ ३९ ॥ समगतें चा ने चक्र रहंता, चंचल चपलने चरणे नाचं ता ॥ साज सोनेरी सोहे केकाणा, लाख वेता लीस वाजे निशाणा ॥ ४० ॥ लाख बेतालीस र थ जोतरीया, कोडी अडतालीस पाला परवरि या ॥ नेजा पंचरंगी पंच क्रोड जाएं, अढीलाख ते दवीधर वखाणुं ॥ ४१ ॥ सोहे राजेंद्र शो ले हजार, एकशो ऐशी वली सांधे सूहार ॥ सा थें सेजवालां पंचलाख वारु, मांहे सुंदरी बेठी दीदारु ॥ ४२ ॥ शेठ सेनापति साथै परधान, जली नांतसुं चाली हिवे जान ॥ बंदुकनी धू

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