Book Title: Jain Shiloka Sangraha Pustika
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund

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Page 55
________________ ५१ रवेने जोती, कुंवरी आशाबे पीयर पनोती ॥ ॥ २९ ॥ कुंवरी विचारे धन्य मुज अवतार, पां चनाइने घर विस्तार ॥ त्र जगतमां म हारी वडाइ, महा बलिया योद्धा महारा बे ना इ ॥ ३० ॥ पचीश नतीजा जगतमां माहारे, ते आागल कोइनुं जोर न चाले || नानीन पांच परिवल जाऊं, पांच नतीजी काम बे काजु ॥ ॥ ३१ ॥ एतो परिवार को नलेरो, हिवे सा नलो निवृत्ति केरो | एक दिन राजा तत्पर थ या, अपमानीतिना मेहेलें त्यां गया ॥ ३२ ॥ देखी सुंदरी पाम्या विश्राम, तो ठरवानुं दी सेबे ठाम || एवं जाणीने तिहाज रह्या, निट तिने पण दीकरा या ॥ ३३ ॥ पांच दीकरा उपर बेटी, जेवी रतननी नरेली पेटी || दान पु एयने धरमना ताजा, प्रथम हुवा विवेक राजा ॥ ३४ ॥ शुन शीलने संतोष कहीयें, पांचमो नाइ वैराग्य लहीयें ॥ अशा नामें बेटी सवाइ, जेहना महाबलिया समरथ जाइ ॥ ३५ ॥ जे कोइ आशा कुंवरीने वरिया, ते तो न वसागर क्षणमांहे तरीया || आशा बांडीने

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