Book Title: Jain Shiloka Sangraha Pustika
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund
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अजब बीली, नीले आनरणे धरती रंगी ली ॥ राग मल्हारनी ऋतु नलेरी, अजुश्रा ली पांचम श्रावणकेरी ॥७॥ पूरण पसरयो व पकाल, पूरण पुहवी पसरयो सुगाल ॥ मध्य रातने पूरण मासे, नेमजी जनम्या राज श्रावा सें ॥८॥ चोशठ इंद्रने उपन्न कुमारी, श्रोचव करीने गया निज ठारी ॥थयो परनात रात वि हाई, दासीयें जईने दीधी वधाई ॥९॥ दूर ते कीधुं दासी आचरण, अनेक प्राप्यां वस्त्र श्रा नरण ॥ सोवन थालनी माहे रूपैया, सवालाख ते प्राप्या सोनैया ॥१०॥अति आनंद पाम्यो नरेश, राजसनामां कीधो प्रवेश ॥ पुत्र जन्म्या नी नोवत वाजी, नादें ते रां अंबर गाजी ॥ ॥११॥ बत्तीश बद्दा तिहां नाटिक थाय, घर घर कुंकुम हाता देवाय ॥ दान याचकने दीधां अह, जाणे के वुठा उत्तर मेह ॥ १२॥ तोरण बांध्यां घर घरबार, घर घर थाये मंगला चार॥ बारे दिवस लगे ओबव कीधो, लखमी तणो त्यां लाहोज लीधो ॥ १३ ॥ अरथ गरथना ख रच्या नंडार, नाम ते राख्यु नेम कुमार ॥ दिन

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