Book Title: Jain Shiloka Sangraha Pustika
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund

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Page 53
________________ ४९ ना प्राक्रमथी राजा लोनाय, अणुमानीतीने में हेले नवि जाय; मानीतीनुं नारे वे काम, नीरवरती राणी जेनं बे नाम ॥ १५ ॥ परवर ती साथै राजा रमे बे, नीशदीन राणी मनमां गमे बे: राणी ने नजी राजाथी माया, एम कर ता पांच दीकरा जाया ॥ १६ ॥ ते उपर एक बेटी त्यां जाणी, व फरजन जण्या परवरती राणी ॥ पांच पुत्रने राजा परणावे, एकेकी कन्या मन गमती ला वे ॥ १७॥ पांच बेटाना कहुबुं नाम, बहु बळी या जेनुं जोरावर काम; वमेरो बेटो मोहज क हीयें, कामने क्रोध तिसरो लहीयें ॥ १८ ॥ लो न मान ए पांचेरे भाइ, आशा बेहेनी ए बनी स गाइ || मोह राजाने कुमतिनारी, पांच बेटाने बे टी एक सारी ॥ १९ ॥ अचेत अज्ञान शोकने धोख, परद्रोही पांचे नाइनो थोक ॥ मिथ्या ना में ते कुंअरी जाणी, बरनी माता कुमति राणी ॥ २० ॥ काम नानेरो मोहनो नाइ, रति स्त्री थी कीधी सगाई || पांच बेटा पण रतिने थया, मद् महर ने उन्माद कह्या ॥ २१ ॥ चोथो दी करो अंकलहीयें, हिंसा पांचमो नाइ ते कही

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