Book Title: Jain Shiloka Sangraha Pustika
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund

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Page 17
________________ नरो, लाने लोने वली दीयो ने वरो ॥ ३० ॥ तेवार माता कहे न लहे तुं टाणु, सुतजी श्रे णिक नहीं किरियाएं॥मगध देशनो मोहोटो डे राय, श्राण एहनी लोपी न जाय॥ ३१ ॥ एह चं सुणीने कुमर अालोचे, सांसें पड्यो ने मन मां हे शोच ॥ माहरे माथे पण जो महाराजा, तजशुं तो सही नोग ए ताजा ॥ ३२॥ एम चिं तिने मुजरे ते प्रायो, नृपने नमीने मेहेल सि धायो । नोजन करीने श्रेणिक नूप, क्रोमो घ हेणानो जोइने कूप ॥ ३३॥ मान गालीने मं दिर गयो, शेठ संजमनो रागीते थयो ॥ नित्य एकेकी परिहरी नारी, प्रेमदा सासुने जइ पुका री ॥ ३४॥ मानि महिलाना सुणी विलाप, जो रे तेणे तिहां दीधा जबाब ॥ रागें रमणीने रेख न खलीयो, जो जो धन्नो हिवे केइ परें मिलीयो ॥ ३५॥ नामें सुनद्रा धन्ना घरे जाणु, शालि नद्रनी बेन वखाणं ॥ वेणी स्वामीनी समारे सा ही, तेणे अवसरे सांगरयो नाइ ॥ ३६॥ आ खें आंसुडां अाव्यां ते सांसे, पड्यां विबूटी पी जने वांमे ॥ धन्नो देखीने पूरे ते धीर. नयणे

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