Book Title: Jain Shiloka Sangraha Pustika
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund
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जाइ ॥ ३ ॥ सैन्य लेइने सबल दीयाने, विवि ध जात तिहां रणतूर वाजें ॥ चक्र अतुल बल अाकाशे हाले. नरत सैन्यशुं पुंठे ते चा ले ॥४॥ परव आदिने उत्तर अंते, प्रा ण मनावी चक्री बलवंतें ॥ साध्या पट खंड क मल अपार, वरश ते बोल्यां साठहजार ॥५॥ गंगा सिंधने साधी सरिता, पनी मलेबना देश ते जीत्या ॥ सेना लेइने नरत सिधाव्या, साधी पटखंड अयोध्यायें श्राव्या ॥६॥ नगरीनां लो क सामांते प्रावे, मोतीये थाल नरीने वधावे ।। वाजे वाजिंत्र नंगल नेरी, शेरीयें फूलमां नाखें वेरी ॥७॥ याचकजन तो कीरति बोले, कोइ न श्रावे श्री नरतने तोले ॥ दिन दिन दोलत वाधे सवाई, बीजानी नहिं तेवी अधिकाइं ॥८॥ अनक्रमें कीधो नगर प्रवेश, चक्रनो श्रोचव मां ड्यो नरेश ॥ चक ते रा आकाशे नमे, श्रा युध शालायें श्रावे नहीं किमे ॥ ९॥ सहु मि लीने मनमां विमासे. शा माटे रह्यं चक्र आका शें ॥ सुणो साहिब कहे सेनानी. नाइ तुमारो एक गुमानी ॥ १० ॥ वाहुबल नामें महा बल

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