Book Title: Jain Shiloka Sangraha Pustika
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund

View full book text
Previous | Next

Page 60
________________ राम केम जीताशे ॥ महारा जोरथी कोइ नवि रह्या, मोहे टा मूगला नडीने गया ॥६५॥ दे व दाणव सरखाने हणु, इंद्रादिक केरो नार न गणं ॥ कही कने कीधा धूलज नेला, आज शुं थयुं प्रावीके मवेला ॥ ६६ ॥ मन जाणे जे पा गे केमनागं, महारा जोरने खांपण लाग्यं ॥ त ताण तिहाथी घोडो चलाव्यो, भातमाराम न जीक श्राव्यो ॥६७॥ नपरा उपर करे घाव, कांइ नवि चाले मननो दाव ॥ प्रातमाराम धी रज लावी, ज्ञाननी गुपतीतिहां चलावी ॥६८॥ दमा खंजिरनो घाव तिवां कीधो, थयो घायल पकमीने लधिो ॥ अवले मुसके बांधे जेम चोर, मन- तिहां चाले नही जोर ॥ ६९॥ बह जो रावर जोधो वश कीधो, जीतनो डंको नगारे दीधो॥ एवं जोइने थर थरी गती, प्रवृत्ति सु तनी अांख तिहां फाटी ॥॥ ७० ॥ महाबलि यो मोह चडियो ने त्यांहि, जापट कण जीले त्रिलोकमांहि ॥ आणी कोरथी विवेक चडिया, बन्ने प्रावीने मोरचे अडीया ॥ ७१ ॥ घj घ मशान चाली लडाइ, सामासामी त्याहां अाफले

Loading...

Page Navigation
1 ... 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83