Book Title: Jain Shiloka Sangraha Pustika
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund
View full book text
________________
म कणयर केरी, कमल तणी परें वाल्यो कर के री ॥ नेमजी रह्या बांह पसारी, जाणे हीडोले हीचे गिरधारी ॥२९॥ कृष्णाजी मनमांजए दि चारी, एह कुंवारो बाल ब्रह्मचारी ॥ इम चिंति ने नारी हकारी, गंटे नेमने बांहे पसारी॥३०॥ नरी खंडो खली केशर कुंकुमे, गोपी दीयरशुं रामत रमे ॥ सत्यनामाने रुक्मिणी राणी, कहे नेमने एहवी ते वाणी ॥ ३१ ॥ परणो राजुल रूपें रढीपाली, नारी विना ते नर कहिये हाली ॥ नारीनो रसते मोटो संसार, नारी ते अडे नरनो अाधार ॥ ३२ ॥ पुरुषनी पासें जो न हो य नारी, वस्तु न धीरे कोइ व्यापारी॥ नारी ते अ रतननी खाण, घरणी वडेते घरनुं मंडा ण ॥ ३३॥ मुसकीशुं बोले गोविंद राणी, बत्ती स सहस्समां बडीजे ठाणी ॥ पायें पम् ते दोहे हुँ जाणी, ते माटे तुमे न्हानी देराणी ॥ ३४॥ जेहशुं अपूरव प्रीत बंधाणी, अाजते हिवे केम रहिये ताणी॥फिरी उत्तर नेमे न दीधो, मान्योमा न्योजी सह कोणे कीधो ॥ ३५॥ बोल बोल्या ने कीधी सगाइ, लीधां लगन ने करी सजाइ॥

Page Navigation
1 ... 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83