Book Title: Jain Shiloka Sangraha Pustika
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund

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Page 51
________________ ४७ विलास, बाहुबल नामें लील विलास ॥६॥इति॥ ॥अथ विवेक विलासनो शिलोको लिख्यते ॥ सरसती माता तुज पाये लागु,दे व गुरू त णी आगन्या मागु ॥ काया नग्रीनो कहु सिलो को, एक चीत्तथी सोनलजो लोको ॥१॥ नग री अनोपम अती घणी सारी, मांही वसे ने मोटा वेपारी ॥ दस दीवान चतुर सुजाण तेनां नामनां करूं वखाण ॥२॥ पान प्रापान नदा न कहीए, समानव्यान पांचमो लडीए ॥ नाग धनंजय देवदत्त कह्या, कुरकल कुरमदश ए थयां ॥३॥ पांच इंद्रीयो खासा परधान, मन बळ वचनबळ कायाबळ जाण, सासोसास ने श्रावु लहिए, ए दशे प्राण कायामां कहीए ॥४॥ पांच पटोधर बुद्धिना नारी, नगरीनी शोना वधारेसारी, कायामांहीवे तत्वने प्राण, अोळखी लेजो चतुर सुजाण ॥५॥ जळ पृथ्वी ने वायु आकाश, पांचमो कहीए तेज प्रानाश॥ नीश दीन नली चाकरी करे, खावंदनी आणा शीरपर धरे ॥६॥ एकेका साथे जमादार पांच, खाए नहीं ते कोइनी लांच, लोही कफ पीत्त विर

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