Book Title: Jain Shiloka Sangraha Pustika
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund
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बादसाह पण आज खाली ॥ शेठनी बेटी सबली बे वाली, ए जोईयें कन्या विमलने आ ली ॥ १५॥ बाईनो नाइ काकाने मामा, साथे सगाइ करवाने साहमाविमलने पोहोता चारे ही नाया, मा जाणे माहारे लेहेणायत आया। ॥ १६ ॥ खत मतांगल माहारोजी होशे, विम ल देशेने दूधे पग धोशे ॥ बेकर जोडीने बो लियो जोशी, पाटणथी पाव्या पूरण दोशी ॥ ॥ १७॥ खत कागलनी बात न कांइ, विमल लावो जू वाटां वधाई॥काका मामाने कन्यानो नाइ, मेंतो श्राव्याने करवा सगाइ॥ १८ ॥ किमहीं केता किमहीं कहेवाय, महारे पाने तो चूनो न देवाय ॥ पुण्य अंकूरो आगल जणा य, अदर अबलो ते सबलो इम थाय ॥१९॥ खेतरवा वाडे विमलनी माता, पाहुणा ढील न करे तिहां जाता ॥ मामासु मिलिया पुढे सुख साता, विमलने हाते शुं घडियो विधाता॥२१॥ मामा साद करे नाणेजा नाइ, श्रावो इणे चव टे इंडं चढाइ ॥ साथें सालो ते सुकन विचारे, विमल बांधशे बादशाह बारे ॥ २१॥ पगे ला

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