Book Title: Jain Shiloka Sangraha Pustika
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund

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Page 13
________________ लान जाणाने सांनलजो लोको ॥ १॥ नगरी रा जगृही श्रेणीक राजा, मगध देशनो एक महारा जागरूड़ी तेहने के चेलणा राणी,जगमा जेहनी कीरति जाणी॥२॥तेह नगरीमा दामें वे ताजो, शेठ गाना माहोटो मलाजो ॥ नद्रा नाम नारिया तेहने, रतां शीलें को जीतें न जेहने॥३॥ देइ मुनिवरने खीरनु दान, संगम गोवालो नाग्य निधान ॥ प्रावी नद्रानी कुखें अवतरि यो, जाणे मुक्ताफल बी संचरियो ॥४॥ पूर्ण मासे प्रसव्यो ते पुत्र, सघठं शोनाव्युं घ रनुं सूत्र ॥ अनेक घरनां अख्याणां श्रावे, वा रु मोतीए सहु वधावे ॥५॥ थोकै थोके तिहां नाटक थाय, माता हियामां हरख नमाय ॥ पि ता आपे तिहां लाख पसाय, वाचक जनना दा रिद्र जाय ॥६॥ करी श्रोउच शालिकुमार, जनके नाम तिहां धरयुं जयकार ॥ दिन दिन चढते वेशे ते दी, रुपे जे रतीना नाथने जींपे ॥७॥ बा परणावी बत्तीस बाला, आ संज म लेइ नजमाला पोहोतो स्वर्गमा पुण्य पसा ये, अवधि प्रयुंजी जोतां नगवे ॥ ८ ॥ पेवी

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