Book Title: Jain Shiloka Sangraha Pustika
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund
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नहीं ॥ हा हा मुजने ए पड्यो वरांसो, सारो अवतार रहेशे ए सांसो ॥ ५९ ॥ हाहा हाथे में आहार न दीधो, आव्यो अवसर अफलज कीधो ॥ नद्रा पुत्रने एवं त्यां नाखें, काई वीसा या अवगुण पाखें ॥ ६० ॥ तुज विना तो सुना यावास, अमने थायवे घडी बमास ॥ हंसी बो ले जो वचन विचार, मने सही तो थाये करा र ॥ ६१ ॥ माता जाणीने जो जो साहमुं, पुत्र तेवारे हूं संतोष पामुं ॥ शालिनद्रने धन्नो वारे बे, तो आपने पापें नरेवे ॥ ६२ ॥ साहमुं जोशो तो अवतार करशो, पडशो फेदमां पाग जो फिरशो || दिलशुं माताने दिलगीर देखी, साधु धन्नानी शिख नवेखी ॥ ६३ ॥ जोयुं शा लिन आख उघाडी, त्यारें रलीयायत थईने मां डी ॥ अंशुक वडे ते सुडां लोहोती, बंदी वहु परशुं मंदिर पहोती ॥ ६४ ॥ धन्नो पाधरो मुग तें गयो, एक अवतारी शालिनद्र थयो । पहो तो सर्वार्थ सिद्ध विमाने, सेवक स्वामी प नही जे थाने ॥ ६५ ॥ संवत सतराशें सितरे वरशें, मिंगसर शुदी तेरशें हरपें । उदयरत्न कहे

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