Book Title: Jain Shiloka Sangraha Pustika
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund

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Page 65
________________ पानां विंब जरावू॥कागल मातागल लिखीने ली धो, पलतो श्री पूज्ये विहार कीधो ॥ ८ ॥ वि मलने पूजे कर जोडी माता, आपणे गुरुजीने ने सुखसाता ॥ साधु मुऊकने लिखी इमलीधो, देवल करावा बोल में दीधो ॥९॥ मतो करीने माता विचारे, पृथ्वीनो पति परधान सारे ॥ रहियें तो राजा विमलने मारे, इम जाणीने गि पीया इग्यारे ॥ १० ॥ नरयुं घर मूकी नाइ घर जाय, मजूरी करंतां तो मनमे शंकाय ॥ पेहेरे नढेने पेट नराय, विमल मामा घर मो टो इम थाय ॥ ११॥ तेणे समे शेठ पाटपनो जाणे, बेटी परणावी जोईयें ईण ठाणे ॥ पूजे प रगाम ठाम ठेकाणो, एवो सुंदर वर किहांथी प्राणो ॥ १२॥ सबला शेहरना शेठनी जाइ, बत्तीश लक्षणी बुद्धिवंती बाइ ॥ सबलो वर जो ईयें करवा सगाइ, पंडितने पूरे पितानो नाइ ॥१३॥ हातनी रेखा देखी अनुसारे, एहनो वर बांधे बादशाहा बारे॥ एहवो वेढालो वाणी या मांही, कुण आणे हो बार बादसाहि ॥१४॥ विमल मामाने मिलवा गयो चाली, ए बांधे

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