Book Title: Jain Shiloka Sangraha Pustika
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund
View full book text
________________
नहीं काम, फोकट बीजानां फोडो का ठाम ॥ च ढीये आपणे अवधज राखी, सुरनर कोडी क रया तिहां साखी ॥४०॥ बेहुने शरीरे रह्या बेहु पासा. तिहां सरनर जोवे तमासा॥नरत बाह बल अधिक दीवाजे, बेहुने शिर बत्र मुकुट बि राजे॥४१॥नरत बाहुबल साहामांबे नाइ, शशि रवि सरिखा रहे थिर थाइ ॥ निरखी सुर नर रहे सहु अलगा, दृष्टि युद्धमा प्रथमज वलगा ॥४२॥ नयणाशं नयणा मलाने जूए, नरतनी श्रांखें अांसं ते चऐ ॥ जिम नादरवे जलधर धारा, जाणे के बेटा मोतीना हारा ॥४३॥ हा रयो नरतने बाहुबल जीत्यो, त्रिनुवन मांहे थ यो वदितो ॥ बोले बाहुबल बंधव प्रीतें, बीजं युद्ध कीजें शास्त्रनी रीतें ॥४४॥ नर हरि नाद जरतें तिहां कीधो, शब्दते सघले थयो प्रसि हो ॥ रणनी नूमि लगें रह्यो ते गाजी, गयवर गह गया हण हण्या वाजी ॥४५॥ गड यड गाजे बाहबल वेगें, हरिनाद कीधो तिहां तेगें। दशो दिशा पूरी नादने बंदें, त्रिनुवन कंपे तेह ने बंदें ॥४५॥ समुद्र जल हलकल्लोले चडिया.

Page Navigation
1 ... 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83