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अध्यात्म और विज्ञान
पढ़ा जाता है गणित के आधार पर। यह सही विज्ञान है ।
आचार शास्त्र भी गणित के आधार पर पढ़ाया जाता है। विनोबा कहा करते थे कि जैन दर्शन को 'अंक दर्शन' (गणित दर्शन) कहना चाहिए। जैन साहित्य का लगभग आधा भाग गणित से भरा पड़ा है। जैन आचार्यों ने गणित का बहुत उपयोग किया। गणितशास्त्र की दृष्टि से भी तत्त्व का विश्लेषण होना चाहिए ।
सत्यनिष्ठा
गुडो हि कफहेतुः स्याद्, नागरं पित्तकारणम् । द्वयात्मनि न दोषोऽस्ति, गुडनागरभेषजे । ।
- गुड़ कफ पैदा करता है और सूंठ पित्त पैदा करती है। दोनों को मिलाने पर न कफ होता है और न पित्त । उनके मूल दोष मिट जाते हैं और तीसरा गुण पैदा हो जाता है। दोनों यदि अलग-अलग होंगे तो दोनों की दूरी बनी रहेगी । वे एक दृष्टि से दोषकारक ही होंगे, गुणकारक नहीं। दोनों का योग होने पर गुणवत्ता आ जाती है
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चेतना दो प्रकार की है- सूक्ष्म चेतना और स्थूल चेतना । मनोविज्ञान की भाषा में सूक्ष्म चेतना को अवचेतन मन कहा जाता है और दर्शन की भाषा में वह सूक्ष्म चेतना है या कर्मशरीर के साथ काम करने वाली चेतना है । मनोविज्ञान के चेतन मन का अर्थ है स्थूल शरीर के साथ, मस्तिष्क के साथ काम करने वाली चेतना, स्थूल चेतना । दोनों के बीच दूरी है; इसे दूर करना जरूरी है । तभी सत्य प्रगट होगा । अन्यथा माया प्रगट होगी ।
सत्य का अर्थ है - नियम की खोज ।
सत्य का बोध है - नियम का बोध ।
सत्य का आचरण है- नियम का आचरण ।
सत्य की यह व्याख्या बहुत ही व्यावहारिक और व्यापक है । यथार्थ में सत्य का अर्थ है-नियम |
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यह संसार नियमों से बंधा हुआ है। प्रत्येक वस्तु और मनुष्य नियम के आधार पर चल रहा है। नियम को वह जाने न जाने, यह दूसरी बात है, किन्तु नियम अपना काम कर रहा है। नियम एक नहीं है, हजारों-हजारों नियम हैं। अनेकान्त का सिद्धान्त नियमों को जानने का साधन है । अनेकान्त ने नियमों की व्याख्या की है, फिर चाहे वह वाणीगत नियम हो या वस्तुगत नियम हो । जो व्यक्ति नियमों को जानता है, वह सत्य को पकड़ लेता है । आज के
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