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जैन दर्शन और विज्ञान सभी प्रवृत्तियां स्थगित हो जाएंगी। सारे विश्व का उष्णतामान एक ही हो जाएगा। तब न तो प्रकाश रहेगा, न जीवन और न उष्मा। केवल नैरन्तरिक और अटल स्थिरता या जड़ता ही रहेगी। काल स्वयं समाप्ति को प्राप्त होगा। ...सब कुछ, जो प्रकृति में देखा जाता है, उससे इसी सिद्धांत की पुष्टि होती है कि विश्व निश्चित रूप से अंतिम अंधकार और विनाश की ओर आगे बढ़ रहा है।"
इस प्रकार विश्व की आदि को स्वीकृत करने वाले सिद्धांतों में भी विश्व की आदि कब हुई, इसके निर्णय में ऐक्य नहीं है। अनादि और अनन्त विश्व के सिद्धांत
जो सिद्धांत हमें शाश्वत अर्थात् अनादि और अनन्त विश्व की बात सुझाते हैं, उनमें पांच महत्त्वपूर्ण प्रकार हैं
१. स्वत: संचालित कम्पनशील (self & pulsating) विश्व । २. अतिपरवलीय (hyperbolic) विश्व। ३. चक्रीय (cyclic) विश्व। ४. स्थायी-अवस्थावान् (steady-state) विश्व । ५. आइन्स्टीन का विश्व ।
स्वत: संचालित कम्पनशील विश्व और अतिपरवलीय विश्व-स्वत: संचालित कम्पनशील विश्व का सिद्धांत और अतिपरवलीय विश्व का सिद्धांत विस्तारमान विश्व के सिद्धांत पर आधारित है। इस कल्पना के अनुसार विश्व का विस्तार जब एक उत्कृष्ट स्थिति तक पहुंचता है, तब वह फिर सिकुड़ना शुरू होता है। सिकुड़ते हुए विश्व में रहे हुए द्रव्य जब उत्कृष्ट घनता को प्राप्त होते हैं, तब वह पुन: विस्तृत होना आरम्भ हो जाता है; और इस प्रकार अनन्त काल तक यह क्रम चलता रहता है। अर्थात् सिकुड़ने और विस्तृत होने का यह कम्पन' अनन्त काल तक चलता रहता
इस प्रकार के सिद्धांत का प्रतिपादन कैलिफोर्निया इन्स्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलोजी' के प्रोफेसर डॉ. आर.सी. टोलमेन (R.C. Tolman) द्वारा स्वतन्त्र रूप से अन्य आधारों पर भी किया गया है। डॉ. टोलमेन का सिद्धांत 'उष्णता-गति-विज्ञान' के दूसरे नियम पर आधारित 'विश्व का अन्त है', इस सिद्धांत के विरुद्ध निरूपण करता है। डॉ. टोलमेन ने यह बताया है कि कुछ निश्चित परिस्थितियों में विश्व के विस्तार और संकोच की क्रिया प्रतिगामी हो सकती है अर्थात् विश्व की १. देखें, फॉम युक्लिड टू एडिंग्टन, पृ० ४६; दी यूनिवर्स एण्ड डॉ. आइन्सटीन, पृ० ११० ।
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