Book Title: Jain Darshan aur Vigyan
Author(s): Mahendramuni, Jethalal S Zaveri
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 332
________________ जैन दर्शन और विज्ञान में पुद्गल ३१७ उदाहरणार्थ-२ गुण स्निग्ध+४गुण स्निग्ध पुद्गल मिल सकते हैं। पर २ गुण स्निग्ध+३ गुण स्निग्ध पुद्गल नहीं मिल सकते। इन नियमों के आधार पर स्कंधों का निर्माण कैसे होगा, यह निम्न कोष्ठक से स्पष्ट होता है " १+१ १+२ १+३ १+४ या ४ से अधिक x+x (x-१ से अधिक) '.x+(x+१) x+(x+२) x+(x+३) या अधिक ७. पुद्गल संख्या की दृष्टि से अनन्त है; क्षेत्र की दृष्टि से सम्पूर्ण लोकाकाश में पुद्गल व्याप्त है पुद्गल के दोनों रूप-परमाणु और स्कंध संख्या की दृष्टि से अनन्त हैं। स्वतन्त्र परमाणुओं की संख्या सदा अनन्त रहती है। उनमें से अनन्त परमाणु प्रति समय स्कंधों के रूप में परिणत होते रहते हैं तथा स्कंधों से निकलकर अनन्त परमाणु स्वतंत्र रूप धारण करते रहते हैं। गलन-मिलन स्वभाव वाले पुद्गल-जगत् में यह प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है, फिर भी परमाणुओं की संख्या अनन्त ही बनी रहती है; स्वतंत्र परमाणु की संख्या में वृद्धि या हानि भी हो सकती है, पर सभी पुद्गल स्कन्धों के साथ रहे परमाणुओं और स्वतंत्र परमाणुओं की कुल संख्या अचल (constant) बनी रहती है। स्कंधों में भी द्वि-प्रदेशी स्कंध (यानी दो परमाणुओं से निर्मित) से लेकर अनन्त-प्रदेशी स्कंध (यानी अनन्त परमाणुओं से निर्मित) तक सभी प्रकार के स्कंधों में प्रत्येक प्रकार के स्कंधों की संख्या अनन्त है तथा कुल पुद्गल-स्कंधों की संख्या भी अनन्त है; पर ये संख्याएं अचल नहीं हैं। इनमें हानि या वृद्धि के बावजूद भी प्रत्येक प्रकार के स्कंधों की संख्या अनन्त से कम नहीं होती।। गुणों (मात्रा) की तरतमता के आधार पर भी परमाणु और स्कंधों के अनन्त-अनन्त प्रकार हो जाते हैं। जैसे-एक गुण (unit) काले परमाणु अनन्त हैं यावत् अनन्त गुण काले परमाणु भी अनन्त हैं। इसी प्रकार दो गुण काले, तीन गुण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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