Book Title: Jain Darshan aur Vigyan
Author(s): Mahendramuni, Jethalal S Zaveri
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 356
________________ जैन दर्शन और विज्ञान में परमाणु ३४१ इतने टुकड़ों की आवश्यकता है, या मूलभूत अणुओं की यह बढ़त पदार्थ-मूलसम्बन्धी हमारे अज्ञान की सूचक है? सही तो यह है कि मौलिक कण अर्थात् परम+अणु, या परमाणु क्या है? यह पहेली अब तक सुलझ नहीं पायी है।' आशा है भविष्य में विज्ञान और दर्शन के समन्वय से प्राथमिक कण की पहेली को सुलझा कर सत्य के सन्निकट पहुंचा जा सकेगा। अभ्यास १. भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण से जैन दर्शन में परमाणु के कितने प्रकार बताए गये ___हैं? परमाणु-पद्गल की विभिन्न परिभाषाओं को स्पष्ट करें। २. जैन दर्शन के परमाणु के गति और क्रिया-सम्बन्धी विवेचन को प्रस्तुत करते ___ हुए विज्ञान के सन्दर्भ में उसकी मीमांसा करें। ३. आधुनिक विज्ञान में परमाणु-सिद्धांत के विकास-वृत्त को अपने शब्दों में प्रस्तुत करें। ४. जैन दर्शन के परमाणुवाद और आधुनिक विज्ञान के परमाणुवाद की तुलना करते हुए बताएं कि भौतिक विश्व के स्वरूप को समझने के लिए इन दोनों को जानना क्यों जरूरी है? ५. जैन दर्शन के अनुसार परमाणु के मुख्य गुण-धर्मों को बताते हुए जैन परमाणुवाद पर विस्तार से प्रकाश डालें तथा सिद्ध करें कि ऐतिहासिक दृष्टि से इसका क्या महत्त्व है? १. अब यह संख्या बढ़कर १०० हो गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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