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विज्ञान के संदर्भ में जैन जीवन-शैली
१७५ अतिआह्लादक या अति भयानक स्वप्न जैसे होता है। जब व्यक्ति नशे की स्थिति में होता है, तब उनकी विवेकशक्ति विकृत हो जाती है जो उसके स्वयं के लिए तथा अन्य लोगों के लिए भी हानिकारक सिद्ध हो सकती है। अमेरिका की "नेशनल ऐकेडमी ऑफ साइन्स'' के “इन्स्टीट्यूट ऑफ मेडिसिन'' नामक संस्थान में गांजा के प्रभाव पर अपनी विस्तृत रिपोर्ट (लगभग १०० पृष्ठों की) के निष्कर्ष में बताया है-“गांजे में विद्यमान मुख्य सक्रिय तत्त्व (डेल्टा टेट्राहाइड्रोकेनाबीनोल) (टी. एच. सी.) शराब की तरह क्रियावाही तंतुओं के पारस्परिक तालमेल को छिन्न-भिन्न कर डालता है।"
इससे गतिमान पदार्थों के हिलने-डुलने को समझने की क्षमता भी प्रभावित होती है। ऐसा व्यक्ति प्रकाश की चमक को पकड़ने में असफल हो जाता है। चूंकि ये सारी क्रियाओं में पैदा होने वाली गड़बड़ी का अर्थ होता है भारी खतरा मोल लेना। इन पदार्थों का सेवन स्वल्पकालीन स्मृति को क्षीण करता है, अवबोध-शक्ति को मन्द तथा निर्णायक शक्ति में विपर्यय करता है, व्यक्ति के मस्तिष्क में आतंक और किंकर्तव्यमूढ़ता की प्रतिक्रियाएं पैदा करता है।
इन पदार्थों का अतिमात्रा में सेवन करने से श्वसन-पथ का कैंसर होने और फुफ्फुसों को गंभीर रूप में क्षति पहुंचने की संभावना बनी रहती है। जर्दा-धूम्रपान: बीसवीं सदी का निर्मम हत्यारा
संसार में समय-समय पर विभिन्न कारण मानव विनाश के लिए उत्तरादायी रहे हैं। इस शताब्दी के शुरू के दशकों में महामारियां, जैसे चेचक, प्लेग, टीबी, मलेरिया और निमोनिया सबसे अधिक अकाल मौतों का कारण बनी। दूसरे एवं पांचवे दशक में मृत्यु के सबसे बड़े कारण विश्व-युद्ध रहे। छठे दशक से अब तक असामयिक मृत्यु का सबसे बड़ा जो कारण रहा है वह है जर्दा-धूम्रपान । पिछले चार दशकों से संसार में तम्बाकू पीने वे खाने से हुयी बीमारियां मानव को मृत्यु मुख में ले जाने में प्रमुख रही हैं। अकाल मृत्यु के सबसे बड़े कारण जर्दा-धूम्रपान को यमदूत की संज्ञा दी जा सकती है। निम्न आंकड़े इस कथन की पुष्टि करते
१. प्रथम विश्व युद्ध के चार सालों में जितने लोगों की मृत्यु हुई, उतने लोग
तो तम्बाकू से उत्पन्न बीमारियों से सिर्फ १.५ वर्ष में काल-कवलित हो जाते
हैं।
२. भयंकर बीमारी एड्स से पिछले एक दशक में संसार में जितने लोगों की मृत्यु
हुई, उतने लोग तो तम्बाकू से हुई बीमारियों से सिर्फ एक माह में मर जाते
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