Book Title: Jain Darshan aur Vigyan
Author(s): Mahendramuni, Jethalal S Zaveri
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 296
________________ २८१ विश्व का परिमाण और आयु आरंभ है' इस तथ्य की पुष्टि हुई है। इस सिद्धांत के परिणामस्वरूप निम्न चार तथ्य सामने आये हैं १. विश्व का विस्तार हो रहा है। २. विश्व में स्थित सारा द्रव्य, जिसका हमारी पृथ्वी केवल एक अंश मात्र है, तेज गति से दूर हटता जा रहा है। इस प्रकार मध्य में केवल एक छिद्र हो गया है। ३. विश्व का अंत कभी-न-कभी होगा। उक्त सिद्धांत 'मुलाई रेडियो-ऑबजरवेटरी' में रेडियो-दूरवीक्षण यंत्र के द्वारा किए गए निरीक्षणों पर आधारित है। इस यंत्र के द्वारा वैज्ञानिक ८,०००,०००,००० प्रकाश वर्ष दूरी तक के आकाश का तथा ८,०००,०००,००० वर्ष तक भूतकाल का अध्ययन कर पाए हैं। यह सिद्धान्त लेमैत्रे के सिद्धान्त से काफी मिलता-जुलता है। इसके अनुसार सहस्रों वर्षों पूर्व सारा विश्व अत्यधिक सूक्ष्म आयतन (वोल्यूम) में समाहित था। सहसा इसका विस्फोट हुआ और तबसे विश्व-स्थित आकाश-गंगाएं एक-दूसरे से दूर होनी शुरू हुई हैं। ___ इस सिद्धांत के आविष्कर्ताओं ने विश्व की आदि के विषय में निश्चित काल बताया है, जिसके अनुसार दस अरब वर्ष पूर्व विश्व का प्रारंभ माना गया है। किन्तु 'विश्व के अंत' के विषय में इन्होंने कोई निश्चित काल नहीं बताया है। फिर भी उनकी यह मान्यता तो है ही कि विश्व अनन्त काल तक नहीं रहेगा। थोड़े ही वर्षों पूर्व जो स्थायी-अवस्थावान्-विश्व' का सिद्धांत कैम्ब्रिज के ही सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रो. फ्रेड होयल द्वारा प्रस्तुत हुआ था, उसका कड़ा विरोध प्रो. मार्टीन रीले ने अपने सिद्धान्त में किया है। विश्व का अन्त भी आएगा, इस सिद्धान्त की आधारशिला उष्णता-गति-विज्ञान (thermodynamics) का दूसरा नियम है। इस नियम के अनुसार प्रकृति की सभी मूलभूत प्रक्रियाएं अप्रतिगामी हैं अर्थात् परिवर्तन की दिशा एक है। इसी विज्ञान के अनुसार विश्व-स्थित जड़-द्रव्यों की राशि में भी परिवर्तन हो रहा है और यह परिवर्तन हास की दिशा में है। प्रकृति की सभी प्रक्रियाएं बता रही हैं कि विश्व की जड़-राशि (शक्तिरूप एवं द्रव्यरूप) शून्य आकाश में विलीन हो रही है। इस प्रकार सारा विश्व मानो मृत्यु की ओर दौड़ रहा है। इस अवस्था को वैज्ञानिक परिभाषा में उत्कृष्ट ताप-अनुपात अत्रोपी' (Maximum Entropy) की अवस्था कहते हैं।' “आज से अरबों वर्ष पश्चात् जब यह अवस्था आएगी, तब विश्व की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358