Book Title: Jain Darshan aur Vigyan
Author(s): Mahendramuni, Jethalal S Zaveri
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 352
________________ जैन दर्शन और विज्ञान में परमाणु ३३७ उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि सामान्यत: जैन दर्शन की पुद्गल की धारणा आधुनिक विज्ञान की मान्यताओं से मूल रूप से मेल खाती है। सूक्ष्म रूप से दोनों की तुलना कठिन है। लगभग पिछले सौ वर्षों में विज्ञान ने जो प्रगति की है उससे नि:संदेह पदार्थ और ऊर्जा के विषय में अनगिनत सूक्ष्मतर विवरणों और मौलिक धारणाओं का प्रादुर्भाव हुआ है, जो प्रयोग-सिद्ध है। यह वैज्ञानिक प्रक्रिया आज भी अनवरत चालू है, रुकी नहीं है। लगता है, भविष्य में गहन अध्ययन और अनुसंधान के परिणामस्वरूप आधुनिक विज्ञान और जैन दर्शन की पुद्गल-संबंधी धारणाओं में कुछ और तालमेल स्थापित करना संभव होगा। परमाणु के मूल गुणधर्म परमाणु के गुणों में जैन दार्शनिकों ने गुरुत्व (भारीपन) और लघुत्व (हलकेपन) को भी मौलिक स्वभाव नहीं माना है; ये भी विभिन्न परमाणुओं के संयोगज परिणाम हैं । अन्वेषण की दृष्टि से यह संकल्पना भी अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है; क्योंकि आधुनिक विज्ञान भी यह मानने लगा है कि स्थूलत्व से सूक्ष्मत्व की ओर जाते हुए तथाकथित परमाणु के छोटे-छोटे कण भार आदि गुणों से रहित हो जाते हैं; जैसे फोटॉन, न्यूट्रीनो आदि। जैनदर्शनकारों ने स्निग्धत्व और रूक्षत्व को परमाणुओं के परस्पर बंधन का कारण माना। ___वैज्ञानिकों ने भी परमाणुओं के परस्पर बन्धन का कारण धनविद्युत् (पॉजीटिव्ह चार्ज) - स्निग्धत्व और ऋणविद्युत् (निगेटिव्ह चार्ज) -रूक्षत्व को माना है। ऐसा प्रतीत होता है कि दोनों ने शब्दभेद से एक ही बात कह दी है। इससे स्पष्ट है कि स्निग्धत्व और रूक्षत्व इन दो गुणों से धन और ऋण विद्युत् पैदा होती है। डॉ. बी. एल. शील ने भी अपनी पुस्तक 'पाजीटिव्ह साइंस ऑफ एन्सिएण्ट हिन्दूज' में इस बात का समर्थन किया है। जैन दर्शन के अनुसार रूक्ष परमाणु रूक्ष के साथ और स्निग्ध परमाणु स्निग्ध के साथ दो से लेकर अनन्त गुणांशों की तरतमता से बंधन को प्राप्त होते हैं। भारी ऋणाणु या 'नेगेट्रॉन' इस बात की पुष्टि करता है, क्योंकि यह केवल ऋणाणुओं का ही समुदाय है। इसी प्रकार डॉ. गेलमान के क्वार्क-सिद्धांत' के अनुसार एक प्रोट्रॉन तीन क्वार्क से मिल कर बना है; जिसमें से एक का आवेश धन १/३ तथा दो क्वार्क प्रत्येक धन २/३ आवेश के होंगे और इस प्रकार प्रोटॉन का कुल आवेश धन के बराबर होगा। १. देखें, पृष्ठ २९४-२९५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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