Book Title: Jain Darshan aur Vigyan
Author(s): Mahendramuni, Jethalal S Zaveri
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 333
________________ ३१८ जैन दर्शन और विज्ञान काले आदि परमाणु भी अनन्त-अनन्त हैं। इसी प्रकार एक गुण स्निग्ध, दो गुण स्निग्ध आदि भी समझने चाहिए। जैसे पूर्व में चर्चा हो चुकी है, कालांतर के साथ परमाणु के स्पर्श आदि गुण (qualities) बदल सकते हैं तथा इनकी मात्रा (units) में भी न्यूनाधिकता होती रहती है। जैसे स्वतंत्र परमाणुओं में गुण एवं गुणों की मात्रा में परिवर्तन होता रहता है, उसी प्रकार स्कंधों में गुण एवं गुणों की मात्रा में भी होता रहता है। इन सारे परिवर्तनों के परिणामस्वरूप पुद्गल-जगत् में पर्यायों का अकल्पित परिवर्तन चलता रहता है। इस निरन्तर चलने वाले पौद्गलिक परिणमनों के बावजूद भी पुद्गल की द्रव्यात्मक शाश्वतता बनी रहती है। इसे ही जैन दर्शन में “परिणामी-नित्यत्व-वाद'' की संज्ञा दी जाती है। कुल मिलाकर समग्र पुद्गल-राशि-परमाणुओं की समग्र संख्या -सदा शाश्वत बनी रहती है। पूरा लोक पुद्गल से भरा हुआ पुद्गल अनन्त हैं-परमाणु और स्कंध दोनों अनन्त हैं। क्षेत्र की दृष्टि से ये अनन्त पुद्गल सम्पूर्ण लोक-आकाश में फैले हुए हैं। एक परमाणु आकाश के एक प्रदेश का अवगाहन करता है; अनन्त परमाणु भी एक प्रदेश में समाविष्ट हो सकते हैं; स्कंध भी एक प्रदेश से लेकर असंख्यात प्रदेशों तक अवगाहन कर सकते हैं। जिस आकाश-प्रदेशों पर एक स्कंध है, उन्हीं आकाश-प्रदेशों पर अन्य अनन्त स्कंधों का समावेश भी हो सकता है। उत्कृष्टत: एक ही स्कन्ध पूरे लोक आकाश का अवगाहन भी कर सकता है। पुद्गल के परिणमन की विशेषता के कारण असंख्यात प्रदेशात्मक लोक में अनन्त पुद्गलों का समावेश हो जाता है। दूसरी ध्यान देने योग्य बात यह है कि सम्पूर्ण लोक में कहीं पर भी खाली स्थान नहीं है अर्थात् जहां पद्गल का अस्तित्व न हो, ऐसा एक आकाश-प्रदेश भी कहीं नहीं मिलता। इस प्रकार पूर्ण आकाश में कहीं पर भी शून्यावकाश (Vacuum) नहीं है। ८. पुद्गल जीव को प्रभावित करता है और उससे प्रभावित भी होता है। दोनों में अन्त:क्रिया सम्भव है। पुद्गल द्रव्य में ग्रहण नाम का एक गुण होता है। पुद्गल के सिवाय अन्य द्रव्यों में किसी दूसरे द्रव्य के साथ मिलने की शक्ति नहीं है। एक पुद्गल अन्य पुद्गल के साथ मिलने की क्षमता तो रखता ही है, पर इसके अतिरिक्त जीव के द्वारा भी उसका ग्रहण किया जाता है। पुद्गल स्वयं जाकर जीव से नहीं चिपटता, किन्तु वह जीव की क्रिया से आकृष्ट होकर उसके साथ संलग्न हो जाता है। जीव-सम्बद्ध या जीव के साथ बद्ध पुद्गल का जीव पर बहुविध असर होता है। जीव पर पुद्गल का प्रभाव और पुद्गल पर जीव का प्रभाव-यह अन्योन्य प्रभाव या अन्त:क्रिया (interaction) ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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