Book Title: Jain Darshan aur Vigyan
Author(s): Mahendramuni, Jethalal S Zaveri
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 351
________________ ३३६ जैन दर्शन और विज्ञान केन्द्रकण (न्यूक्लियस) में धनात्मक विद्युत् आवेश और इलेक्ट्रॉन में ऋणात्मक विद्युत् आवेश होता है; इसलिए परमाणु (एटम) में केन्द्रकण से इलेक्ट्रॉन बंधे रहते हैं। उदाहरण के लिए हाइड्रोजन अणु का केन्द्रकण केवल एक होता है और एक इलेक्ट्रॉन उसके चारों ओर चक्कर लगाता रहता है। कार्बन परमाणु के केन्द्र-कण में ६ प्रोटॉन एवं ६ न्यूट्रॉन होते हैं और छह इलेक्ट्रॉन उसकी परिक्रमा करते रहते हैं। परमाणुओं के सम्मिलन से मॉलीक्यूल, क्रिस्टल इत्यादि के बनने में भी धनात्मक एवं ऋणात्मक विद्युत् आवेश उत्तरदायी हैं। जैन दर्शन में स्निग्ध गुणवाले कणों के बंधने से स्कन्ध बनने का भी वर्णन है। केन्द्रकण (न्यूक्लियस) में जो प्रोट्रॉन बंधे रहते हैं वे धनात्मक विद्युत्आवेश-युक्त हैं। इससे स्पष्ट है कि दो धनात्मक विद्युत् आवेश-युक्त कणों (पार्टिकल्स) के बीच भी आकर्षण एवं बन्धन संभव है। जैन दर्शन का परमाणु इन्द्रियग्राह्य नहीं है। इन्द्रियग्राह्य (पर्सेप्टिबिल) का तात्पर्य यदि समझा जाए कि परमाणु किसी वैज्ञानिक प्रयोगशाला के यन्त्रों से ग्राह्य (डिटेक्टेबल) नहीं है तो निष्कर्ष निकलता है कि आधुनिक विज्ञान ने जो मौलिक कण (एलीमेंट्री पार्टिकल्स) खोज निकाले हैं, जैन दर्शन के अनुसार वे सब कई परमाणुओं के संयोग से बने स्कन्ध हैं। जैन दर्शन के अनुसार पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु सब पदार्थ परमाणुओं से निर्मित हैं। साथ ही, विभिन्न प्रकार की ऊर्जा, आतप (हीट), प्रकाश (लाइट), विद्युत् (इलेक्ट्रीसिटी) आदि, पुद्गल की पर्याय हैं; इसलिए ऊर्जा में भी परमाणु होने चाहिये जैसे कि जल, स्वर्ण, वायु आदि के स्कंधों में हैं। आधुनिक प्रयोगशालाओं में ऊर्जा (एनर्जी) को पदार्थ (मैटर) के रूप में और पदार्थ को ऊर्जा के रूप में परिवर्तित करने की प्रक्रियाएं होती रहती हैं। इससे तात्पर्य है कि ऊर्जा और पदार्थ दोनों में एक ही मौलिक तत्त्व है तथापि आधुनिक विज्ञान पदार्थ को कणात्मक (पार्टिकल आस्पेक्ट) और ऊर्जा को तरंगात्मक विव्ह आस्पेक्ट) मानता है; साथ ही ऊर्जा की तरंगें किसी स्थिति (वातावरण) में कणात्मक रूप दर्शाती हैं और पदार्थ के कण समुचित स्थिति में तरंगात्मक रूप दर्शाते हैं। जहां तक मौलिक कणों (एलीमेंट्री पार्टिकल्स) का प्रश्न है, आज का वैज्ञानिक प्रोटॉन, न्यूट्रॉन, इलेक्ट्रॉन, कई प्रकार के मैसॉन, न्यूट्रीनों, क्वार्क इत्यादि कणों के अनुसंधान में रत हैं। यदि जैन दर्शन का परमाणु इन्द्रियग्राह्य के साथ-साथ यन्त्र-ग्राह्य भी नहीं है तो इन सब मौलिक कणों में से कोई भी कण जैनदर्शन का परमाणु नहीं हो सकता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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