Book Title: Jain Darshan aur Vigyan
Author(s): Mahendramuni, Jethalal S Zaveri
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 335
________________ ३२० जैन दर्शन और विज्ञान ८. मन। इन आठ वर्गणाओं के विषय में हम विस्तृत चर्चा कर चुके हैं। आधुनिक विज्ञान भौतिक वास्तविकता को मुख्यत: दो भागों में विभाजित करता है-१. पदार्थ, २. ऊर्जा । इनका भी पारस्परिक रूपातंरण अब संभव हो गया है, जिसकी चर्चा हम कर चुके हैं। अवस्था के आधार पर पदार्थ तीन प्रकार के माने जाते हैं-१. ठोस, २. तरल, ३. वायु। तापमान के आधार पर अवस्थाओं का रूपांतरण संभव है। ___ आधुनिक विज्ञान में मूल तत्त्वों (elements) के आधार पर विश्व के सभी भौतिक पदार्थों को ३०३ प्रकारों में बांटा जाता है। पर जैसे हम चर्चा कर चुके हैं परिवर्तन के द्वारा तत्त्वों में भी रूपांतरण किया जा सकता है। जैन दर्शन का वर्गीकरण अधिक मौलिक प्रतीत होता है, क्योंकि कृत्रिम साधनों द्वारा एक का दूसरे में रूपांतरण संभव नहीं है। परमाणुओं का स्कन्ध में या स्कन्ध का परमाणुओं में अथवा आठ वर्गणाओं का पारस्परिक रूपांतरण केवल वैनसिक रूप से ही हो सकता है; कृत्रिम (प्रायोगिक) साधनों द्वारा नहीं। अभ्यास १. पुद्गल शब्द की व्युत्पत्ति के आधार पर उसके स्वरूप को बताते हुए पुद्गल के मुख्य गुणों के स्वरूप को स्पष्ट करें। २. जैन दर्शन ने शब्द, प्रकाश आदि विशेष पर्यायों की जो व्याख्या प्रस्तुत की है उस पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए उसकी वैज्ञानिकता की मीमांसा करें। ३. पुद्गल के सामान्य स्वरूप को समझने के लिए मुख्य आधार-बिंदु कौन-कौन-से हैं? इनमें से किन्हीं दो को विस्तार से समझाइए।' १. जैन दर्शन और संस्कृति, पृ० ४७-४९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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