Book Title: Jain Darshan aur Vigyan
Author(s): Mahendramuni, Jethalal S Zaveri
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 347
________________ ३३२ जैन दर्शन और विज्ञान ३. फोटोन, फोनॉन। ४. प्रतिकण (एन्टी-पार्टिकल्स)। इनके अतिरिक्त बहुत से अन्य कण भी एटम से संबंधित हैं, जैसे-मैसॉन, ग्लुओन, बैरिऑन तथा अन्य स्ट्रेंज कण। एटम से सम्बन्धित इस प्रकार के कणों की संख्या सौ से भी अधिक है। प्रारम्भिक कण पदार्थ तथा विकरणों के सरलतम कण हैं। इनमें से बहुत से कणों का जीवन-काल बहुत ही अल्प है तथा सामान्यतया ये अस्तित्वहीन हैं। पहले उस सभी कणों को प्रारम्भिक कण कहा जाता था, जिनका पुन: विभाजन न हो सके; लेकिन आजकल इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन, मैसॉन, म्यूओन, बैरीऑन, स्टैंज कण तथा प्रतिकणों के लिए तथा फोटॉन के लिए इस शब्द का प्रयोग किया जाता है; लेकिन अल्फा कणों तथा ड्यूट्रोन के लिए इसका प्रयोग नहीं करते हैं। क्वार्क : पदार्थ का मूलभूत कण समझा जाता था कि विभिन्न प्रारम्भिक कणों की खोज से वैज्ञानिक की पदार्थ के मूलभूत (अन्तिम) कणों की खोज-जिज्ञासा समाप्त हो जाएगी; लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आज भी बहुत से वैज्ञानिक मूलभूत कणों की खोज में लगे हुए हैं। पाया गया है कि न्यूट्रॉन एक स्थिर कण नहीं है तथा इसका अर्द्ध जीवन-काल लगभग १२.८ मिनिट ही है। न्यूट्रॉन एक प्रोटॉन, एक इलेक्ट्रॉन तथा न्यूट्रीनों में टूट जाता है। प्रोट्रॉन भी एक अस्थिर कण है तथा इसका अर्द्ध जीवन-काल लगभग १०-२५ वर्ष है; अन्तत: न्यूट्रॉन तथा प्रोट्रॉन को हम एटम के मूलभूत कण नहीं मान सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि 'क्वार्क' पदार्थ का मूलभूत (अन्तिम) कण है तथा इसका और विभाजन नहीं किया जा सकता। सैद्धांतिक रूप से यह सिद्ध किया जा चुका है कि प्रोटॉन तीन क्वार्कों से मिलकर बना हुआ है। वैज्ञानिक अभी प्रायोगिक तौर पर इसके अस्तित्व को सिद्ध करने में लगे हुए हैं। मूलभूत कण का वेग बहत से वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध किया है कि प्रकाश का वेग ३ x १०१० सें. मी. प्रति सेकंड होता है। माइकल्सन तथा मोर्ले ने सिद्ध किया कि प्रकाश का वेग किसी भी स्थिति में इससे अधिक नहीं हो सकता है। प्रकाश का वेग नियत है। अब प्रश्न यह है कि क्या किसी वस्तु का वेग प्रकाश के वेग से अधिक हो सकता है? आइंस्टीन ने इस प्रश्न का उत्तर ‘सापेक्षतावाद के सिद्धांत' को प्रतिपादित करके दिया। उन्होंने कहा कि किसी भी वस्तु का वेग प्रकाश से अधिक नहीं हो सकता। बहत समय तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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