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जैन दर्शन और विज्ञान में परमाणु
३३३ यही माना जाता रहा; लेकिन रूस के वैज्ञानिक कैरेनोव ने साबित किया कि कुछ विशिष्ट माध्यम में स्वयं प्रकाश का वेग भी ३ x १०१० से. मी./सेकंड से अधिक हो सकता है; लेकिन निर्वात में प्रकाश का वेग इतना ही होगा। आकर्षण के बल
आकर्षण के बल तीन प्रकार के होते हैं : कूलम्ब बल, विद्युत्-चुम्बकीय बल तथा नाभिकीय (न्यूक्लीय) बल। सभी प्रारम्भिक कणों को एक साथ एक ही नाभिक में रखने के लिए जिम्मेदार नाभिकीय बल है। नाभिक तथा इलेक्ट्रॉन को एक साथ एक एटम में रखने के लिए जिम्मेदार विद्युत्-चुम्बकीय बल है। कूलम्ब बल एटम के लिए कार्य नहीं करते।
(३) जैन दर्शन और विज्ञान का तुलनात्मक अध्ययन मूलभूत कण और परमाणु : मूलभूत (अन्तिम) कण की परिकल्पना परमाणु की परिकल्पना से मिलतीजुलती है कि यह एक अविभाज्य इकाई है। (१) अब तक लगभग सौ से ऊपर प्रारम्भिक कणों को खोजा जा चुका है। इनमें से कुछ कण मूलभूत (अन्तिम या अल्टीमेट) कण नहीं हैं, जैसे-न्यूट्रॉन तथा प्रोटॉन; क्योंकि ये अन्य छोटे कणों में पुन: विभक्त हो जाते हैं। जैनदर्शन के अनुसार, परमाणुओं के दो सौ भेद होते हैं तथा इन सब परमाणुओं के अलग-अलग विशिष्ट गुण होते हैं। यहां यह स्पष्ट है कि अभी इन परमाणुओं को पाने के लिए और अधिक खोज की आवश्यकता है। (२) ‘परमाणु' पदार्थ (पुद्गल) का एक द्रव्यमान-रहित (संहति-रहित) कण है। यहां एक सामान्य प्रश्न यह उठ सकता है कि जब परमाणु में द्रव्यमान ही नहीं होता तब वह पदार्थ कैसे हो सकता है? कोई भी भौतिक पिण्ड विभिन्न परमाणुओं से मिलकर बना होता है; लेकिन जब परमाणु का कोई द्रव्यमान नहीं होता तब उस भौतिक पिण्ड में द्रव्यमान कहां से आ जाता है? इस कथन की व्याख्या वैज्ञानिक सिद्धांतों के आधार पर की जा सकती है।
न्यूट्रीनो' एक मूलभूत कण है तथा यह बीटा कणों के क्षय के समय उत्पन्न होता है। यह द्रव्यमान-रहित होता है तथा अन्य कणों के साथ इसका पारस्परिक संबन्ध नहीं होता; लेकिन इसकी एक निश्चित ऊर्जा ही होती है। इसी प्रकार बहुत से अन्य कणों के साथ भी होता है।
__ हम परमाणु के बारे में भी कह सकते हैं कि वह द्रव्यमान-रहित है; क्योंकि परमाणु हमेशा गतिशील रहता है, अत: उसकी कुछ निश्चित ऊर्जा अवश्य होती है।
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