Book Title: Jain Darshan aur Vigyan
Author(s): Mahendramuni, Jethalal S Zaveri
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 319
________________ ३०४ ही यह प्रक्रिया संभव है 1 भी ४. बंध की प्रक्रिया में संघात से उत्पन्न स्निग्धता अथवा रूक्षता में से जो गुण अधिक परिमाण में होता है, नवीन स्कंध उसी गुण-रूप में परिणत होता है । उदाहरण के लिए एक स्कंध पन्द्रह स्निग्धगुणयुक्त स्कंध और तेरह रूक्षगुणयुक्त स्कंध से बने तो यह नवीन स्कंध स्निग्ध गुणरूप होगा । आधुनिक विज्ञान के क्षेत्र में भी हम देखते हैं कि यदि किसी परमाणु में से ऋणाणु (इलेक्ट्रान) निकाल लिया जाए तो वह धन-विद्युद् आवेशित (पोजीटिव्हली चार्ज्ड) और यदि एक ऋणाणु जोड़ दिया जाए तो वह ऋणाणु विद्युद् आवेशित (निगेटिव्हली चार्ज्ड ) हो जाता है । ३. भेद (fission) स्कंधों का विघटन अर्थात् कुछ परमाणुओं का स्कंध से विच्छिन्न होकर अलग हो जाना अन्तरंग और बहिरंग- इन दोनों प्रकार के निमित्तों से स्कंधों का अनेक स्कंधों अथवा परमाणुओं के रूप में विच्छिन्न होना भेद कहलाता है । भेद के भी दो प्रकार हैं - १. वैस्रसिक २. प्रायोगिक । जैन दर्शन और विज्ञान वैसिक भेद- किसी भी पौद्गलिक स्कंध का स्वाभाविक विघटन वैस्रसिक भेद कहलाता है। उदाहरणार्थ - बादलों का विघटन । वायु, वर्षा, जल-प्रवाह आदि नैसर्गिक परिबलों द्वारा होने वाला विघटन भी इस कोटि में समाविष्ट है । आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से रेडियो क्रियात्मक तत्त्वों में से विकिरण का उत्सर्जन भी वैि भेद का स्पष्ट उदाहरण है । निमित्त की विविधताओं के कारण भेद के पांच या छह प्रकार होते हैं१. उत्कर - फाड़ना। मुंग आदि पदार्थों को दाल के रूप में दो भागों में फाड़ना या विभाजित करना । २. चूर्ण - पीसना | गेहूं आदि पदार्थों को पीसकर आटा बनाना । ३. खंड-टूकड़े करना। लोह आदि पदार्थों को तोड़कर टूकड़े करना । ४. प्रतर-तहों या परतों (layers) में विभाजन करना । अबरक आदि पदार्थों की परत उतारना । ५. अनुतटिका - दरार पड़ना । काच दिवार आदि पदार्थों में दरार डालना । सवार्थसिद्धि के अनुसार भेद के छह प्रकार इस रूप में मिलते हैं१. उत्कर - करौत आदि से जो लकड़ी आदि को चिरा जाता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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