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जैन दर्शन और विज्ञान
वैसे भी आइन्स्टीन के अनुसार ऊर्जा तथा द्रव्यमान पदार्थ के ही गुण हैं। ऊर्जा को द्रव्यमान में तथा द्रव्यमान को ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है; अतः परमाणु के बारे में यह कहना कि वह द्रव्य-मान- रहित है, सही है। (३) जैसा कि हमने पहले कहा, परमाणुओं के दो सौ भेद होते है; लेकिन परमाणु के गुण स्पर्श, रस, गंध तथा वर्ण की तीव्रता के आधार पर परमाणुओं के अनन्त भेद हो सकते हैं। न्यूट्रीनो की धारणा भी कुछ ऐसी ही है । विभिन्न न्यूट्रीनो की अलग-अलग ऊर्जाएं होती हैं, इनकी यह ऊर्जा इस बात पर निर्भर करती है कि उस समय हुए विकिरण में बीटा कणों की ऊर्जा कितनी है? इसी प्रकार अन्य कणों के साथ भी होता है । ( ४ ) विभिन्न नाभिकीय कणों को एक ही नाभिक में रखने के लिए नाभिकीय बल जिम्मेदार है तथा नाभिक और इलेक्ट्रॉनों को एक ही एटम में रखे रखने के लिए जिम्मेदार विद्युत् चुम्बकीय बल है। जबकि परमाणुओं के स्निग्ध तथा रूक्ष गुण इन्हें एक ही पिण्ड ( स्कन्ध) में बनाये रखने के लिए जिम्मेदार हैं । ये दोनों दृष्टिकोण समान प्रतीत होते हैं 1 (५) किसी भी पिण्ड का वेग चाहे वह बड़ा हो या छोटा, प्रकाश के वेग से अधिक नहीं हो सकता अर्थात् ३ x १०० से० मी० / सेकंड से अधिक नहीं हो सकता। विज्ञान का यह एक आधारभूत सिद्धांत है । परमाणु का वेग प्रकाश के वेग से अधिकतम तक हो सकता है। यहां हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि अभी वैज्ञानिकों के पास ऐसे उपकरण का अभाव है जो इतने अधिक वेग को नाप सके । इतना अवश्य है कि प्रकाश का वेग ३ X १०° सें० मी० / सेकंड से अधिक हो सकता है, जैसाकि वैज्ञानिक कैरेनोव ने सिद्ध किया है। (६) प्रकाश बहुत सारे फोटॉनों से मिल कर बना होता है । अब प्रश्न यह है कि क्या फोटॉन को मूलभूत (अन्तिम) कण माना जा सकता है? जैनदर्शन के अनुसार प्रकाश बहुत सारे परमाणुओं का समुदाय है । प्रकाश स्कन्ध के अन्तर्गत आता है; अत: प्रकाशकणों ( फोटॉनों) को परमाणु नहीं माना जा सकता ।
द्रव्याक्षरत्ववाद
पुद्गल उत्पाद, व्यय और धौव्य युक्त है । अपनी जाति का त्याग किये बिना नवीन पर्याय की प्राप्ति उत्पाद है, पूर्व - पर्याय का त्याग व्यय है, द्रव्य के मूल तत्त्वों का ज्यों-व -का-त्यों रहना धौव्य है। बर्फ गल कर पानी बनता है । इस प्रक्रिया में बर्फ-रूपी पर्याय का व्यय होता है, जल-रूपी पर्याय का उत्पाद होता है; किन्तु दोनों अवस्थाओं में पुद्गल द्रव्य अविनष्ट बना रहता है। इस क्रिया में दो हाइड्रोजन अणुओं (हाइड्रोजन एटम) और एक ऑक्सीजन अणु से बने पानी के अणुगुच्छ ( मॉलीक्यूल) नहीं बदलते। पानी के भाप बनने की क्रिया में भी उसके अणुगुच्छ यथापूर्व रहते हैं ।
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