________________
जैन दर्शन और परामनोविज्ञान
९३
कहा - "मुझे गोद में उठाकर ले चलो । जब पहले तूं छोटी थी और मैं बड़ी थी तब मैं तुझे गोद में उठाकर घुमाती थी । " छोटी बहिन के मुंह से इस प्रकार की बात सुनकर बड़ी बहिन को हंसी आ गई। उसने पूछा- तुम बड़ी कब थी ?
मार्टा ने कहा- उस समय मैं इस घर में नहीं रहती थी । मेरा घर यहां से काफी दूर था। वहां अनेक गाय, बैल आदि हमारे घर पाले हुए थे तथा नारंगी के पेड़ थे। वहां कुछ बकरे जैसे पशु भी पाले हुए थे पर वे बकरे नहीं थे ।
इस प्रकार बातचीत करते हुए मार्टा और लीला जब घर पहुंची, लीला ने सारी बात अपने माता - पिता से कही । पिता ने मार्टा से कहा- जिस घर की तुम चर्चा कर रही हो वहां हम कभी नहीं रहे ।
मार्टा ने तुरन्त उत्तर दिया- उस समय आप हमारे माता-पिता नहीं थे, वे दूसरे थे। छोटी बच्ची की पागल की-सी बातें सुनकर उसकी एक अन्य बहिन ने मजाक में ही मार्टा से पूछा तब फिर तुम्हारे घर एक छोटी हब्सी नौकरानी (लड़की) भी थी, जैसे अपने घर में अभी है !
इस मजाक से बिल्कुल भी बैचेन नहीं हुई उसने कहा - ना, हमारे घर में जो हब्शी नौकरानी थी, काफी बड़ी थी। एक रसोईयन भी हब्शी थी तथा वहां दूसरे एक हब्शी लड़का भी काम करता था। एक बार वह लड़का बेचारा पानी लाना भूल गया था, तब मेरे पिता ने उसे बहुत पीटा था ।
पिता (एफ. व्ही. लौरेंज) बोले- मेरी प्यारी बेटी, मैंने तो कभी हब्शी बच्चे को नहीं पीटा है।
मार्टा बोली- - पर वह तो मेरे दूसरे पिता थे । ज्योही उस लड़के को पिताजी पीटना शुरू किया वह लड़का मुझे बुलाता हुआ चिल्लाने लगा - अरे सिह्ना ! मुझे बचाओ। मैंने तुरन्त पिताजी से निवेदन किया- उसे छोड़ दो और फिर वह पानी भरने
चला गया ।
एफ. व्ही. लौरेंज ने पूछा- तो क्या वह नाले पर पानी भरने चला गया ? मार्टा ने कहा- ना पिताजी ! वहां आस पास में कहीं नाला नहीं था, वह कुए से पानी लाता था । पिता ने पूछा, बेटी सिह्ना जिह्ना कौन थी । मार्टा ने कहा-वह तो मैं ही थी। मेरा दूसरा नाम भी था। मुझे मारिया भी कहते थे और एक नाम और भी था जो कि मुझे याद नहीं है ।
इसके पश्चात् तो मार्टा ने और भी अनेक बातें अपने पूर्व जन्म के संबंध में बताई। उसने यह बताया कि 'मेरी इस जन्म की माता ईदा लौरेंज पूर्व जन्म
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org