Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 13
________________ अपने पिता को मुक्त करवाया। पिता के आशीर्वाद से बाद में समंगा नदी में स्नान करने से इनके सब अंग पुनः सीधे हो गए। बाद में वदान्य ऋषि की कन्या सुप्रभा से इनका विवाह हो गया, पर विवाह के पहले भी इन्हें एक पत्नीव्रत की निष्ठा की कठोर परीक्षा देनी पड़ी थी। ऐसी अनेक अदभुत कथाएं इनके बारे में प्रचलित हैं। स्वाभाविक है कि जीवन के इतने चढ़ाव-उतार का अनुभव हो जाने पर वे एक महान तत्वज्ञानी हो गए। जनक को उपदिष्ट महागीता उनका यही विशद तत्वज्ञान है। . इस महागीता में महर्षि अष्टावक्र की विशद वाणी तो है ही, किंतु जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, इन सूत्रों का विवेचन रजनीश की मौलिक सूझ है। रजनीश एक ऐसे दर्पण हैं, जिसमें इन सूत्रों की काया ही नहीं, बल्कि रजनीश-प्रज्ञा की क्ष-किरणों से उनकी अंतश्चेतना भी उदभासित हो जाती है। क्ष-किरण विज्ञान का अनुसंध है: मेरा विश्वास है, अध्यात्म की भी एक ऐसी किरण है, जिसे 'ज्ञ-किरण' का नाम दिया जा सकता है। विज्ञान में 'क्ष' (एक्स) को किसी भी अज्ञात राशि का प्रतिनिधि मान कर उसे ज्ञात करने का प्रयास किया जाता है। अध्यात्म किसी सत्य को जानकर उसका अनुभव या दर्शन करके उसका बोध करता है, अतः उसे 'ज्ञ' किरण के नाम से अभिहित करना ही अधिक उपयुक्त होगा। रजनीश एक ऐसा दर्पण है, जिसमें 'क्ष' और 'ज्ञ' दोनों ही किरणें दर्शक के समग्र (इंटिग्रेटेड) स्वरूप को अनायास स्पष्ट कर देती हैं। . महागीता का यह नवीन संस्करण प्रस्तुत हो रहा है। मैंने इस दर्पण में अपना बिंब देखने का प्रयत्न किया है, किंतु मेरी आंखों में अभी धुंध छाई हुई है। बार-बार इन सूत्रों को पढ़ता हूं ताकि यह धुंध छंट जाए-छंट जाएगी, क्योंकि स्पष्टता का प्रमाण मिलने लगा है। लिखित प्रवचनों की यही विशेषता है, महत्ता है। ये सूत्र स्वयं रजनीश बन कर आपके सामने हैं। आप बार-बार निश्शंक अपनी समस्याएं इनके सामने रखें। श्रवण के समय, अन्य श्रोताओं की उपस्थिति में, संभव है आपको अपनी शंकाएं प्रस्तुत करने में लज्जा का बोध हो सकता है। बुद्धि के प्रतीक वस्त्रों के पीछे पागल मूढ़ राजा की नग्नता की कहानी आपने अवश्य पढ़ी होगी। इन सूत्रों के सम्मुख आपको लज्जित होने का कोई कारण नहीं है और आप समय-असमय, अकेले-दुकेले कभी भी, अपने आपको झांक कर देख सकते हैं। 'दिल के आइने में है तस्वीरे-यार, जब जरा गर्दन झुकाई देख ली।' बड़े मजे की बात यह है कि इस आइने में झलकी तस्वीरे-यार आपकी ही तस्वीर है। मेरी कामना है कि आपकी आंखों की धुंध छंटे और आप अपना प्रकत प्रतिबिंब देखने में सफल हों। हरि ॐ तत्सत्। सन्हैयालाल ओझा श्री सन्हैयालाल ओझा हिंदी भाषा के यशस्वी कवि, लेखक एवं संपादक हैं। आपने कविताएं, नाटक, कहानियां, निबंध, समीक्षाएं, उपन्यास आदि विभिन्न साहित्यिक विधाओं में सुंदर एवं सारगर्भित रचनाएं दी हैं। आपकी एक दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। सम्प्रति श्री ओझा भारतीय भाषा परिषद, कलकत्ता में निदेशक पद पर कार्यरत हैं।

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