Book Title: Shant Sudharas
Author(s): Vinayvijay
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 9
________________ रस यौवन का गुलाम बन गया, वह तो गुलाम की भांति मन्दबुद्धि वाला हो जाता है और ऐसा व्यक्ति किन-किन कटु फलों को प्राप्त नहीं करता है ? ॥१४॥ यदपि पिण्याकतामङ्गमिदमुपगतम्, भुवनदुर्जयजरापीतसारम् । तदपि गतलज्जमुज्झति मनोनाङ्गिनाम्, वितथमति कुथितमन्मथविकारम् ॥ मूढ..... ॥ १५ ॥ अर्थ :- त्रिभुवन में जिसे कोई न जीत सके, ऐसी जरावस्था मनुष्य के शरीर के सार को पी जाती है और उसके शरीर को निःसार (सत्त्वहीन) बना देती है, फिर भी आश्चर्य है कि लज्जाहीन प्राणी काम के विकारों का त्याग नहीं करता है ॥१५॥ सुखमनुत्तरसुरावधि यदतिमेदुरम्, कालतस्तदपि कलयति विरामम् । कतरदितरत्तदा वस्तु सांसारिकम्, स्थिरतरं भवति चिन्तय निकामम् ॥ मूढ..... ॥ १६ ॥ ___अर्थ :- अनुत्तर विमान तक के देवताओं को जो अत्यन्त सुख है, वह सुख भी कालक्रम से समाप्त हो जाने वाला है। अतः तू अच्छी तरह से विचार कर ले कि इस संसार की वस्तुए कितने दिनों तक स्थिर रहने वाली हैं ? ॥१६॥ यैः समं क्रीडिता ये च भृशमीडिता, यैः सहाकृष्महि प्रीतिवादम् । शांत-सुधारस

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