Book Title: Shant Sudharas
Author(s): Vinayvijay
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 45
________________ ९. निर्जरा भावना यनिर्जरा द्वादशधा निरुक्ता, तद् द्वादशानां तपसां विभेदात् । हेतुप्रभेदादिह कार्यभेदः, स्वातन्त्र्यतस्त्वेकविधैव सा स्यात् ॥ ११० ॥ इंद्रवज्रा अर्थ :- बारह प्रकार के तप के भेद के कारण निर्जरा के भी बारह प्रकार कहे गये हैं। हेतु के भेद से यहाँ कार्य में भेद है, परन्तु स्वतन्त्र दृष्टि से विचार करें तो निर्जरा एक ही प्रकार की होती है ॥११०॥ काष्ठोपलादिरूपाणां, निदानानां विभेदतः । वह्निर्यथैकरूपोऽपि, पृथग्रूपो विवक्ष्यते ॥१११ ॥ अनुष्टप् अर्थ :- जिस प्रकार अग्नि एक ही प्रकार की होती हुई भी काष्ठ तथा पत्थर आदि हेतुओं के भेद से अलग-अलग भी कही जाती है ॥१११॥ निर्जरापि द्वादशधा, तपोभेदैस्तथोदिता। कर्मनिर्जरणात्मा तु, सैकरूपैव वस्तुतः ॥११२ ॥ अर्थ :- इसी प्रकार तप के बारह प्रकार होने से निर्जरा भी बारह प्रकार की कही गई है, लेकिन कर्म-क्षय की दृष्टि से तो निर्जरा एक ही प्रकार की है ॥११२॥ शांत-सुधारस ४५

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