Book Title: Shant Sudharas
Author(s): Vinayvijay
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 57
________________ ११. लोकस्वरूप भावना सप्ताऽधो धो विस्तृता याः पृथिव्यश्छत्राकाराः सन्ति रत्नप्रभाद्याः । ताभिः पूर्णो योऽस्त्यधोलोक एतौ, पादौ यस्य व्यायतौ सप्तरज्जूः ॥ १४१ ॥ शालिनी अर्थ :- नीचे-नीचे विस्तार पाने वाली, छत्र के आकार वाली रत्नप्रभा आदि सात पृथ्वियाँ हैं और उनसे परिपूर्ण सात राजलोकप्रमाण अधोलोक है; जो इस लोक-पुरुष के दो पैर समान हैं ॥१४१॥ तिर्यग्लोको विस्तृतो रज्जूमेकां, पूर्णो द्वीपैरर्णवान्तैरसंख्यैः । यस्य ज्योतिश्चक्रकाञ्चीकलापं, मध्ये कार्यं श्रीविचित्रं कटित्रम् ॥ १४२ ॥ अर्थ :- असंख्य द्वीप - समुद्रों से परिपूर्ण एक राजलोक विस्तार वाला तिर्च्छालोक है, जिसमें ज्योतिषचक्र लोकपुरुष के कटिप्रदेश पर सुशोभित मेखला के समान है ॥१४२॥ लोकोऽथोर्ध्वे ब्रह्मलोकेद्युलोके, यस्य व्याप्तौ कूर्परौ पञ्चरज्जू । लोकस्याऽन्तो विस्तृतो रज्जूमेकां, सिद्धज्योतिश्चित्रको यस्य मौलिः ॥ १४३ ॥ ५७ शांत-सुधारस

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