Book Title: Shant Sudharas
Author(s): Vinayvijay
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 66
________________ जीवहिंसा आदि पापों के आस्रव में लगे रहने से वह जन्म माघवती (सातवीं नरकभूमि) के मार्ग में ले जाने वाला है ॥१६५॥ आर्यदेशस्पृशामपि सुकुलजन्मनां, दुर्लभा विविदिषा धर्मतत्त्वे । रतपरिग्रहभयाहारसंज्ञार्तिभिहन्त ! मग्नं जगद् दुःस्थितत्वे ॥ बुध्य० ॥१६६ ॥ अर्थ :- आर्यदेश में रहने वाले और उत्तम कुल में जन्म लेने के बाद भी सद्धर्म-श्रवण की इच्छा होना अत्यन्त दुर्लभ है, क्योंकि मैथुन, परिग्रह, भय और आहार संज्ञारूप पीड़ा से सम्पूर्ण जगत् अत्यन्त दुर्दशा में डूबा हुआ है ॥१६६।। विविदिषायामपि श्रवणमतिदुर्लभं, धर्मशास्त्रस्य गुरुसन्निधाने । वितथविकथादितत्तद्रसावेशतो, विविधविक्षेपमलिनेऽवधाने ॥ बुध्य० ॥१६७ ॥ अर्थ :- सद्धर्म की जिज्ञासा होने के बाद भी व्यर्थ ही विकथा आदि के रस से अनेक प्रकार के विक्षेपों से मन के मलिन होने से सद्गुरु के सान्निध्य में धर्मशास्त्र का श्रवण अत्यन्त दुर्लभ है ॥१६७।। धर्ममाकर्ण्य संबुध्य तत्रोद्यम, कुर्वतो वैरिवर्गोऽन्तरङ्गः। रागद्वेषश्रमालस्यनिद्रादिको, ___ बाधते निहतसुकृतप्रसङ्गः ॥ बुध्य० ॥ १६८ ॥ शांत-सुधारस ६६

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