Book Title: Shant Sudharas
Author(s): Vinayvijay
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ २. अशरण भावना ये षट्खंडमहीमहीनतरसा, निर्जित्य बभ्राजिरे, ये च स्वर्गभुजो भुजोर्जितमदा मेदुर्मुदा मेदुराः । तेऽपि क्रूरकृतान्तवक्त्ररदनैर्निर्दल्यमाना हठादत्राणाः शरणाय हा दशदिशः प्रैक्षन्त दीनाननाः ॥ २१ ॥ शार्दूलविक्रीडितम् अर्थ :- अपने असाधारण बल से छह खण्ड पृथ्वी को जीतकर जो सुशोभित थे, जो स्वर्ग को भोगने वाले थे, जो अपनी भुजाओं के बल से मदोन्मत्त बने हुए थे और आनन्द की लहरियों में मस्त बने हुए थे, वे जब अत्यन्त क्रूर यमराज द्वारा अपने दाँतों से नष्ट कर दिए गए, तब भी वे अशरणभूत, दीन मुख वाले शरण के लिए दशों दिशाओं में देखते हैं ॥२१॥ तावदेव मदविभ्रममाली, तावदेव गुणगौरवशाली । यावदक्षमकृतान्तकटाक्षै-नैक्षितो विशरणो नरकीटः ॥२२॥ स्वागतावृत्तम् अर्थ :- जब तक शरण रहित मनुष्य रूपी कीटक, भयंकर यमराज की दृष्टि में नहीं आता है, तभी तक वह जाति शांत-सुधारस १२

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96