Book Title: Shant Sudharas
Author(s): Vinayvijay
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 23
________________ प्रकार की बुद्धि जिसके हृदय में उत्पन्न होती है, क्या उसे किसी प्रकार के दुःख का उदय हो सकता है ? ॥५०॥ एक उत्पद्यते तनुमा-नेक एव विपद्यते । एक एव हि कर्म चिनुते, स एककः फलमश्नुते ॥ विनय० ॥५१॥ अर्थ :- (इस संसार में)जीवात्मा अकेला ही उत्पन्न होता है और अकेले ही मरता है, वह अकेले ही कर्मों का संग्रह करता है और वह अकेले ही उनके फल को भोगता है ॥५१॥ यस्य यावात् परपरिग्रह-विविधममतावीवधः । जलधि विन्हितपोतयुक्त्या, __ पतति तावदसावधः ॥ विनय० ॥५२॥ अर्थ :- विविध प्रकार की ममताओं से भारी बने हुए प्राणी को जितना अन्य वस्तुओं का परिग्रह होता है, उतना ही वह समुद्र में रहनेवाले यान की तरह नीचे जाता है ॥५२॥ स्व-स्वभावं मद्यमुदितो, भुवि विलुप्य विचेष्टते । दृश्यतां परभावघटनात्, पतति विलुठति जृम्भते ॥ विनय० ॥५३॥ अर्थ :- शराब के नशे में पागल बना हुआ व्यक्ति अपने मूल स्वभाव को त्यागकर पृथ्वी पर आलोटने की व्यर्थ चेष्टा करता है, इसी प्रकार पर-भाव की घटना से जीवात्मा नीचे गिरता है, आलोटता है और जम्हाई लेता है ॥५३॥ शांत-सुधारस

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