Book Title: Shant Sudharas
Author(s): Vinayvijay
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 91
________________ उपसंहार प्रशस्ति - श्लोको (स्त्रग्धरा छन्दः) एवं सद्भावनाभिः सुरभितहृदयाः संशयातीतगीतोनीतस्फीतात्मतत्त्वास्त्वरितमपसरन्मोहनिद्राममत्वाः । गत्वा सत्त्वाममत्वातिशयमनुपमां चक्रिशक्राधिकानां सौख्यनां मङ्खलक्ष्मीम्, परिचितविनयाः स्फारकीर्ति श्रयन्ते।१। अर्थ :- इस तरह सद्भावनाओ से सुवासित हृदयवाला आत्मा संशयातीत बनकर आत्मतत्त्व के चिंतन से मोह-निद्रा ममत्व को तुरंत दूर करता है । सत्वशील बनकर निर्ममत्वभाव को धारण करता है । अनुपम ऐवम शत चक्रवर्तीओ के सुख से भी अधिक सुख भावनाभावित मन को होता है। इस सुख से चारो और अपना यश फैलाता है। और अंत में मोक्षगति को प्राप्त करता है॥१॥ न करता शांत-सुधारस ९१

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