Book Title: Shant Sudharas
Author(s): Vinayvijay
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 54
________________ अर्थ :- आपकी महिमा के अतिशय से बादलों की श्रेणी अमृततुल्य जल से इस पृथ्वी का सिंचन करती है और सूर्य व चन्द्र भी उदय होते हैं ॥१३३।। निरालम्बमियमसदाधारा, तिष्ठति वसुधा येन । तं विश्वस्थितिमूलस्तम्भं, त्वां सेवे विनयेन ॥ पालयः ॥१३४॥ ___ अर्थ :- आपके प्रभाव से यह पृथ्वी बिना किसी आलम्बन के टिकी हुई है । इस प्रकार विश्वस्थिति के मूल स्तम्भ स्वरूप धर्म की मैं विनयपूर्वक सेवा करता हूँ ॥१३४।। दानशीलशुभभावतपोमुख-चरितार्थीकृतलोकः। शरणस्मरणकृतामिह भविनां, दूरीकृतभयशोकः।पालय०।१३५। अर्थ :- दान, शील, शुभ भाव और तप रूप मुख द्वारा जिसने इस जगत् को चरितार्थ किया है, शरण और स्मरण करने वाले भव्य प्राणियों के भय और शोक को जिसने दूर किया है (ऐसा यह जिनधर्म है।) ॥१३५।। क्षमा-सत्य-संतोष-दयादिक, सुभगसकलपरिवारः । देवासुरनरपूजित-शासन, कृत-बहुभवपरिहारः।पालय०। १३६। अर्थ :- क्षमा, सत्य, सन्तोष और दयादि जिसका सुभग परिवार है, जो देव, असुर और मनुष्यों से पूजित है, ऐसा यह शासन (जिनशासन) अनेकों भवों का परिहार करने वाला है ॥१३६॥ शांत-सुधारस ५४

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