Book Title: Shant Sudharas
Author(s): Vinayvijay
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 52
________________ धारण करने में भुजाएँ भी असमर्थ हो जायें, ऐसी कष्टदशा के विपाक समय में, भलीभांती बद्ध कवच वाला सज्जन रूप धर्म ही सर्व जगत् के रक्षण के लिए उद्यमशील होता है ॥१२९॥ त्रैलोक्यं सचराचरं विजयते यस्य प्रसादादिदं, योऽत्राऽमुत्र हितावहस्तनुभृतां सर्वार्थसिद्धिप्रदः । येनानर्थकदर्थना निजमहः सामर्थ्यतो व्यर्थिता, तस्मै कारुणिकाय धर्मविभवे भक्तिप्रणामोऽस्तु मे ॥१३० ॥ शार्दूलविक्रीडितम् ___ अर्थ :- जिसकी कृपा से सचराचर रूप तीन जगत् (सदा) जयवन्त रहते हैं, जो प्राणियों के लिए इस लोक और परलोक की समृद्धि को लाने वाला है और जो अपने प्रभाव से अनेक अनर्थों की परम्पराओं को निष्फल बनाने वाला है, महाकरुणामय उस धर्मविभव को भक्तिपूर्वक मेरा प्रणाम हो ॥१३०॥ णा प्राज्यं राज्यं सुभगदयिता नन्दना नन्दनानां, रम्यं रूपं सरसकविता-चातुरी सुस्वरत्वम् । नीरोगित्वं गुणपरिचयः सज्जनत्वं सुबुद्धिः, किं नु ब्रूमः फलपरिणतिं धर्मकल्पद्रुमस्य ॥१३१ ॥ मन्दाक्रान्ता अर्थ :- धर्म कल्पवृक्ष की फलपरिणति का हम क्या वर्णन करें? उसके प्रभाव से विशाल राज्य, सौभाग्यवती पत्नी, शांत-सुधारस ५२

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