Book Title: Shant Sudharas
Author(s): Vinayvijay
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 14
________________ स्वीकार कर और अत्यन्त पवित्र चारित्र के साथ अपना अनुसन्धान कर ||२४|| " तुरगरथेभनरावृतिकलितं दधतं बलमस्खलितम् । हरति यमो नरपतिमपि दीनं, मैनिक इव लघुमीनम् ॥ २५ ॥ अर्थ :- जिस प्रकार एक छोटे मत्स्य को बड़ा मत्स्य निगल जाता है, उसी प्रकार घोड़े, रथ, हाथी तथा पैदल सैन्य से अस्खलित बल को धारण करने वाले और अत्यन्त दीन बने राजा को भी यमराज उठा ले जाता है ॥२५॥ । प्रविशति वज्रमये यदि सदने, तृणमथ घटयति वदने । तदपि न मुञ्चति हत समवर्ती, निर्दय - पौरुषनर्ती ॥ २६ ॥ अर्थ :कोई वज्र से निर्मित घर में प्रवेश कर जाय, अथवा मुख में तृण धारण कर ले तो भी निर्दय बनकर अपने पौरुष का नाच करने वाला, तिरस्कार योग्य तथा सबको समान गिनने वाला यमराज किसी को नहीं छोड़ता है ॥२६॥ विद्यामन्त्रमहौषधिसेवां, सृजतु वशीकृतदेवाम् । रसतु रसायनमुपचयकरणं, तदपि न मुञ्चति मरणम् ॥२७ ॥ अर्थ :- कोई विद्या, मंत्र और महा औषधियों का सेवन करे, देवताओं को भी अपने वश में कर ले तथा देह को पुष्ट करने वाले रसायनों का सेवन करे तो भी मृत्यु उसे नहीं छोड़ती है ॥२७॥ शांत-सुधारस १४

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