Book Title: Shant Sudharas
Author(s): Vinayvijay
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 53
________________ पुत्र-पौत्रादि, लोकप्रिय रूप, सुन्दर काव्य-रचना का चातुर्य, असाधारण सुन्दर वक्तृत्व, नीरोगता, गुण की पहचान, सज्जनत्व तथा सुन्दर बुद्धि आदि की प्राप्ति होती है ॥ १३१ ॥ ॥ दशम भावनाष्टकम् ॥ पालय पालय रे पालय मां जिनधर्म । मंगलकमलाकेलिनिकेतन, करुणाकेतन धीर । शिवसुखसाधन भवभयबाधन, जगदाधार गम्भीर ॥ पालय० ॥ १३२ ॥ अर्थ :- हे जिनधर्म ! आप मेरा पालन करो, पालन करो, पालन करो । हे मंगललक्ष्मी की क्रीड़ा के स्थान रूप ! हे करुणा की ध्वजा स्वरूप ! हे धैर्यवान् ! हे शिवसुख के साधन ! हे भवभय के बाधक ! हे जगत् के आधारभूत ! हे गम्भीर जिनधर्म ! आप मेरा रक्षण करो ! रक्षण करो ! (ध्रुवपद) ॥१३२॥ सिञ्चिति पयसा जलधरपटली, भूतलममृतमयेन । सूर्याचन्द्रमसावुदयेते, तव महिमातिशयेन ॥ पालय० ॥१३३॥ शांत-सुधारस ५३

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